कोशिका की खोज
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कोशिका की खोज

कोशिकाओं का वास्तविक ज्ञान माइक्रोस्कोप (सूक्ष्मदर्शी) के अविष्कार के बाद ही प्राप्त हो सका। सर्वप्रथम 1665 में रॉबर्ट हूक (Robert hooke )नामक एक अँगरेज वैज्ञानिक ने माइक्रोस्कोप का निर्माण किया। हूक ने अपने बनाए माइक्रोस्कोप में कॉर्क (cork)की एक पतली काट में अनेक सूक्ष्म ,मोटी भित्तिवाली ,मधुमक्खी की छत्ते जैसी कोठरियाँ देखीं। इन कोठरियों को रॉबर्ट हूक ने सेल (cell)का नाम दिया। 

लीउवेनहोएक(नामक) एक डच वैज्ञानिक द्वारा माइक्रोस्कोप की लेंस व्यवस्था संशोधित होने के पश्चात कोशिका का अध्यन आगे बढ़ा। सर्वप्रथम 1674 में उन्होंने अपने उन्नत माइक्रोस्कोप में स्वतंत्र कोशिकाओं जैसे जीवाणु ,प्रोटोजोआ आदि को देखा। 1831 नै रॉबर्ट ब्राउन(Robert Brown)नामक एक वैज्ञानिक नै बताया की प्रत्येक कोशिका के केंद्र में एक गोलाकार रचना होती है। इसे ब्राउन ने केंद्रक(nucleus)नाम दिया। पुरकिंजे (Purkinje)ने 1839 में कोशिका  के अंदर पाए जानेवाले अर्धतरल ,दानेदार सजीव पदार्थ को प्रोटोप्लाज्म या जीवद्रव्य नाम दिया। 1838 में एक वनस्पसति वैज्ञानिक शलाइडेन(Schleiden)ने कहा की पादपों का शरीर सूक्ष्म कोशिकाओं का बना होता है। 1839 में प्रसिद्ध प्राणिवैज्ञानिक श्वान(Schwann)ने बताया की जंतु का शरीर भी सूक्ष्म कोशिकाओं का बना है। फिर ये दोनों जर्मन वैज्ञानिको ने अपने अध्यन के आधार पर एक मत का प्रतिपादन किया। इसे कोशिका सिद्धांत कहते हैं। कोशिका सिद्धांत में उन्होंने यह बात व्यक्त की कि कोशिका शरीर की संरचनात्मक इकाई है। 

इसके बाद 1855 में विरचो (Virchow)ने बताया की नई कोशिकाओं का निर्माण पहले से मौजूद कोशिकाओं से होता है। मैक्स शुल्ज (Max Schultze) ने 1861 में बताया की कोशिका प्रोटोप्लाज्म का एक पिंड है,जिसमे एक केन्द्रक होता है। इस कथन को प्रोटोप्लाज्म मतवाद (protoplasm theory)कहते हैं। इसके बाद 1884 में स्ट्रासबर्गर (Strasburger) ने  बताया कि वंशागति में भाग लेता हैं। इसके बाद अच्छे मिक्रोस्कोप तथा रासायनिक पदार्थ की मदद से कोशिका का अध्यन जारी रहा। 1931 में इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप का अविष्कार एम.नॉल (M Knoll)एवं इ.रस्का (E Ruska)द्वारा हुआ,जिसकी सहायता से कोशिका एवं कोशिकांगो की रचनाओं का ज्ञान धीरे-धीरे बढ़ रहा है।  

कार्यकलाप   

1. प्याज का एक छोटा टुकड़ा लें। इसके आंतरिक परतों को चिमटी की सहायता से उतारें।इन परतों के भीतरी सतह की ओर पतली एवं पारदर्शक झिल्ली दिखाई पड़ेगी। इस झिल्ली को वाच ग्लास में रखे जल में डाल दें।अब एक कांच का साफ स्लाइड लें।वाच ग्लास में हे झिल्ली के एक छोटे टुकड़े को चिमटी की सहायता से स्लाइड के जल पर रखें।यह ध्यान रखें कि झिल्ली का टुकड़ा मुड़े नहीं यानी बिलकुल सीधी रहे।अब इसपर एक बूँद आयोडीन डालें। 2-3 मिनट के बाद स्लाइड को थोड़ा टेढ़ा कर जल-मिश्रित आयोडीन को गिरा दें।अब झिल्ली के ऊपर एक बूँद गिल्सरीन डालकर सुई(needle) की सहायता से एक स्वच्छ कवर स्लिप को इस प्रकार ढंकें कि इसमें वायु के बुलबुले न आने पाएँ।अब इस स्लाइड को माक्रोस्कोपे के कम शक्ति(100×) और फिर उच्च शक्ति(450 ×) में देखें।


2. एक स्वच्छ काँच के स्लाइड पर एक बूँद रक्त रखें। एक दूसरे स्लाइड की मदद से रक्त को फैलाकर उसकी एक पतली परत बनाएँ। उसपर एक बूँद मेथलीन ब्लू(methylene blue) डालकर उसे एक कवर स्लिप से सुई की सहायता से धीरे-धीरे इस प्रकार ढँके कि इसमें वायु के बुलबुले न आने पाएँ। इसे माइक्रोस्कोप के कम शक्ति एवं उच्च शक्ति में देखें। 


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