Why is heat generated in a wire when an electric current is passed through it?
यदि किसी चालक (जैसे-धातु के एक तार) के दोनों सिरों को सेल या बैटरी से जोड़ा जाता है, तो चालक के सिरों के बीच एक विवावंतर (potential difference)स्थापित हो जाता है। चालक के मुक्त इलेक्ट्रान (free electron) चालक के उच्च-विभव के सिरे की ओर त्वरित (accelerated) होते हैं।परन्तु ,इन एलेक्ट्रॉनों की चाल लगातार बढ़ नहीं पाती ,क्योंकि वे अपने मार्ग पड़नेवाले चालक के धनायनों (positive ions) से बारंबार (frequently)टकराते रहते हैं। इससे उनकी चाल मंद पड़ जाती है। इस प्रकार विभवांतर के कारण इलेक्ट्रान जो गतिज ऊर्जा प्राप्त करते हैं ,उसका कुछ भाग वे चालक के आयनों को दे देते हैं। इससे चालक की आंतरिक ऊर्जा (internal energy) बढ़ जाती है ,इसके फलस्वरूप चालक का ताप (temperature) बढ़ जाता है। तप्त चालक (heated conductor) इस प्रकार से प्राप्त ऊर्जा को अपने अगल-बगल की वस्तुओं (परिवेश आदि) में ऊष्मा-अंतरण (heat transfer) द्वारा वितरित करता है। इसका अर्थ यह हुआ कि
किसी चालक में प्रवाहित विद्युत-धारा द्वारा उत्सर्जित ऊष्मा का परिणाम उसके द्वारा चालक के प्रतिरोध के विरुद्ध किए गए कुल कार्य के बराबर होता है।
विद्युत धारा से उत्पन्न ऊष्मा परिणाम
माना कि किसी चालक PQ,जिसका प्रतिरोध R है ,के सिरों बीच विवावंतर V स्थापित किया गया है ,यदि चालक PQ में विद्युत-धारा I समय t तक प्रवाहित होती है तो चालक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक प्रवाहित होनेवाले आवेश का परिमाण
Q = It ... (i )
[I =Q/t]
परन्तु ,चालक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक Q आवेश को विवावंतर V के अधीन ले जाने में किया गया कार्य
W = VQ
[V=W/Q]
समीकरण (i) से Q का मान रखने पर ,
W=(It)V
या W=VIt .... (ii )
परन्तु ,ओम के नियम से ,
V =IR
V का मान समीकरण (ii )में रखने पर ,
W=(IR)It
या W=I(square)Rt ..... (iii)
अतः ,t समय में प्रतिरोध R को पार करने में विद्युत-धारा I द्वारा चालक में संचित आंतरिक ऊर्जा
U =I(square)Rt
यही संचित ऊर्जा चालक के अगल-बगल की वस्तुओं को उष्मा के रूप में वितरित होती है।
कार्य ,आंतरिक ऊर्जा या ऊष्मा का SI मात्रक जूल (J) है। ऊष्मा का cgs मात्रक कैलोरी (cal) है ,जहाँ 1 cal =4.186 J ≈ 4.2 J
आंतरिक ऊर्जा से निम्नलिखित तीन नियम प्राप्त होते हैं।
- किसी निश्चित समय t में किसी निश्चित प्रतिरोध R वाले चालक में उत्पन्न हुई ऊष्मा का परिमाण U उसमें प्रवाहित होनेवाली विद्युत् धारा I के वर्ग के समानुपाती (directly proportional)होता है ,अर्थात U ∝ I (square)(जब R और t नियत हों )
- किसी निश्चित प्रबलता की विद्युत-धारा I द्वारा निश्चित समय t में उत्पन्न ऊष्मा का परिमाण,चालक के प्रतिरोध के समानुपाती होता है ,अर्थात U ∝ R (जब I और t नियत हों )
- किसी दिए गए चालक में एक ही प्रबलता की धारा भिन्न-भिन्न समय तक प्रवाहित करने पर उत्पन्न का परिणाम,धरा प्रवाह के समय t के समानुपाती होता है ,अर्थात U ∝ t (जब I और R नियत हों )
1841 में ब्रिटिश वैज्ञानिक जूल(joule) ने प्रयोगिक अध्ययन के आधार पर चालकों में विद्युत-धारा के कारण उत्पन्न ऊष्मा के सबंध में उपर्युक्त तीन नियम दिए गए थे ,इसीलिए इन नियमों को जूल के उष्मीय नियम भी कहते हैं।
चूँकि ओम के नियम से ,
I =V /R
अतः समीकरण (iii) से
W =(V/R)(square) Rt
W={V(square)/R}t
अतः चालक में संचित आंतरिक ऊर्जा और उसके अगल -बगल की वस्तुओं को प्राप्त ऊष्मा का परिणाम
U={V(square)/R}t
स्पष्ट है कि दिए गए विवावंतर V तथा समय t के लिए उत्पन्न ऊष्मा का परिणाम चालक के प्रतिरोध के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होता है। अतः ,
यदि एक ही विभवांतर को दो प्रतिरोधकों पर आरोपित किया जाए ,तो कम प्रतिरोधवाले प्रतिरोधक में अधिक ऊष्मा उत्पन्न होगी।