- उपसंघ वर्टिब्रेटा के सभी जंतुओं में नोटोकॉर्ड उपास्थि या अस्थि (cartilage or bone) के बने मेरुदंड रज्जु (vertabral column )द्वारा प्रतिस्थापित (replaced)हो जाता है।
- इन जन्तुओ का मस्तिष्क (brain)जटिल होता है तथा यह एक क्रेनियम (cranium or brain box)में बंद होता है। इसी कारण वर्टिब्रेटा क्रेनियटा (craniata) भी कहलाता है।
- सिर में विशेष प्रकार के जोड़े संवेदी अंग (sense organ)होते है ,जिनसे वर्टिब्रेट जंतु देखने सुनने सूँघने जैसी कार्य करते हैं।
वर्ग 1.मत्सय या पीसीज (class 1 pisces )
- इसके अंतर्गत मछलियाँ आती है जो लवणीय (marine)और मृदु जल (freshwater) में पाई जाती है।
- इनका शरीर धारारेखीये(streamline)होता है। शरीर के इस आकर के कारन मछलियों को तैरते समय जल अवरोध कम-से -कम लगता है।
- इनकी त्वचा शल्कों (scales)से ढँकी होती है।
- इनमे तैरने के लिए पख (fins) तथा मांसल पूँछ होते हैं।
- अन्तः कंकाल (endoskeleton)उपास्थि (जैसे स्कोलिओडोन,इलेक्ट्रिक रे) या अस्थि(जैसे रोहू कतला ,ट्यूना आदि )के बने होते हैं।
- इनमे श्वसन क्लोम या गिल्स (gills) सहायता से होता है। गिल्स की मदद से ये जल घुली ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं।
- इनके ह्रदय में दो वेश्म या कक्ष (chambers) होते हैं।
- ये अनियततापी या असमतापी या शीतरक्तीय (cold blooded) होते हैं। अर्थात ,वातावरण के तापक्रम के अनुसार इनके शरीर का ताप बदलता रहता है।
- ये जल में अंडे देनेवाले (oviparous) वर्टिब्रेट हैं।
वर्ग 2 . एम्फिबिया(Class 2. Amphibia )
- ये जल और अस्थल दोनों पर निवास करने में सक्षम होते हैं। इसीलिए ये जल-अस्थलचर या उभयचर (amphibious) कहलाते हैं।
- यह अनियततापी या शीतरक्तीय (cold-blodded)जंतु है।
- इनकी त्वचा ग्रंथिमय(glandular) होता है। त्वचा पर शल्क नहीं होते हैं।
- श्वसन त्वचा, गिल्स और फेफड़े द्वारा होता है।
- अन्तः कंकाल अस्थि का बना होता है।
- ह्रदय में तीन कक्ष या वेश्म दो अलिंद (auricles)एवं एक निलय (ventricle) होते हैं। लाल रुधिरकण केंद्रकयुक्त होता है।
- मलाशय और मूत्रजनवाहिनी क्लोएका में खुलते हैं।
- बाह्य निषेचन होता है।
- परिवर्धन के समय टैडपोल लार्वा (tadpole larva)बनता है ,जो कायांतरण के पश्चात शिशु बनता है।
वर्ग 3. रेप्टीलिया (Class 3.Reptilia)
- ये साधारणतः अस्थलवासी,लेकिन कुछ जलवासी भी होते हैं।
- ये रेंगकर चलते हैं ,अतः इस वर्ग को रेप्टीलिया कहा जाता है।
- ये शीतरक्तीय(अनियततापी) होते हैं।
- शरीर ऐसे शल्को से ढँका होता है जिनकी उत्पत्ति त्वचा के एपिडर्मल स्तर से होती है। त्वचा पर ग्रंथि नहीं होती है। अतः,त्वचा शुष्क (dry)होती है।
- श्वसन फेफड़ो के द्वारा होता है।
- इनके ह्रदय में समान्यतः तीन वेश्म या कक्ष होते हैं ,परन्तु इसी वर्ग के एक जंतु मगरमच्छ में ह्रदय चार वेश्मों में बाँटा होता है।
- अन्तः कंकाल अस्थि का बना होता है।
- साधरणतः अन्तः निषेचन (internal fertlization)होता है। ये अंडे जल में न देकर स्थल पर ही देते हैं।
- इनमे कोई लार्वा अवस्था नहीं होती।
वर्ग 4 ऐवीज (Class 4 Aves)
उदहारण :-बतखचोंचा(platypus),कंगारू (Macropus),चमगादड़ ,गिलहरी ,खरहा (Orytolagus),चूहा (Rattus),कुत्ता (canis),मैकाका (rhesus Monkey),शेर (panthera)हाथी(Elephas),मनुष्य(Homo)
- इस वर्ग के अंतर्गत पक्षी आते हैं।
- ये नियततापी (warm-blooded) जंतु है। अर्थात इनके शरीर के तापक्रम में वातावरण के तापक्रम के अनुसार परिवर्तन नहीं होता है। ये उड्डयनशील(flying)जंतु है।
- शरीर परों (feathers)से ढँका रहता है।
- इनके अग्रपाद पंखो (wings)में रूपांतरित हो जाते है ,जो उड़ने में मदद करते है।
- जबड़ो में दाँत नहीं होते है।
- श्वशन फेफड़ो द्वारा होता है।
- ह्रदय चार वेश्मो में बँटा होता है।
- कंकाल स्पंजी (spongy) तथा हलका होता है।
- ये अंडज (oviparous) होते है। अर्थात अंडे देनेवाले जंतु है। इनके अंडे कठोर कवच से घिरे होते है.
वर्ग 5. स्तनी या मैमेलिया (Class 5. Mammalia)
- ये नियततापी होते हैं।
- त्वचा बाल या रोम (hairs) से ढँका रहता है।
- बाह्यकर्ण (pinna) उपस्थित है।
- इनमे स्तन (mammary gland) पाए जाते हैं। स्तन में ननवजात के पोषण के लिए दुग्ध ग्रन्थियाँ पाई जाती है।
- श्वशन फेफड़ो द्वारा होता है।
- ह्रदय में चार कोष्ठ होते है।
- लाल रुधिरकण केन्द्राकहीन होता है।
- इनमे अंतः निषेचन होता है। मादा शिशुओं को जन्म देती है। हालाँकि स्तनी के एक वर्ग अंडे भी देते है(जैसे इकिडना ) तथा एक वर्ग अविकसित शिशु का जन्म देते है(जैसे कंगारू)।कंगारू में अविकसित शिशु प्रारम्भ में उदर के नीचे स्थित मार्सुपिएम नामक थैली में रहते है जहाँ से दुग्ध ग्रंथि में पोषण प्राप्त करते हैं।