किसी चालक के दोनों सिरों के बीच विभवांतर बनाए रखने की एक सरल विधि यह है की उसे किसी (cell) या बैटरी(baterry) के ध्रुवों के बीच जोड़ दिया जाए।
सेल या बैटरी एक ऐसा युक्ति(Device) है,जो अपने अंदर हो रहे रासायनिक अभिक्रियाओं (reactions) द्वारा सेल के दोनों इलेक्ट्रोडों (electrodes) के बीच विभवांतर बनाए रखती है।इटली के वैज्ञानिक अलेक्सांद्रो वोल्टा (Alessandro volta) ने सर्वप्रथम 1796 में एक ऐसे सरल स्रोत का अविष्कार किया जिससे विद्युत्-धारा लगातार मिल सके। अतः ,उनके सम्मान में इसका नाम वोल्टीय सेल रखा गया।
आजकल हम चार्ज ,ट्रांजिस्टर आदि में जिन शुष्क सेलों (dry cells) का उपयोग करते हैं, वे वोल्टीय सेल के ही संशोधित रूप हैं।
यहाँ यह ध्यान देना आवश्यक है की विद्युत् -धारा के स्रोत(जैसे -सेल।,बैटरी आदि) तार में विध्यमान इलेक्ट्रोडों को एक निश्चित दिशा में गति प्रदान करते हैं ,उन्हें उतपन्न नहीं करते।इस प्रकार के स्रोत में रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा रासायनिक ऊर्जा (chemical energy) के रूप में रूपांतर मात्रा होता है।
किसी सेल को चित्र (a) को चित्र (b) में दिखाए गए संकेत से दर्शया जाता है। बड़ी रेखा सेल के धन ध्रुव (positive terminal) तथा छोटी रेखा ऋण ध्रुव (negative terminal) को दर्शाती है।
एक सेल से प्रयाप्त प्रबलता की धारा नहीं मिलने पर एक से अधिक सेलों को विशेष रूप से समूहित किया जाता है चित्र (a)।
सेलों की समूहित व्यवस्था को ही बैटरी कहा जाता है।बैटरी में अधिकतर हम सेल के ऋण ध्रुव को दूसरे सेल के धन ध्रुव से और दूसरे सेल के ऋण ध्रुव को तीसरे सेल के धन ध्रुव से,और इसी प्रकार अन्य सभी सेलों कोजोड़ते हैं। ऐसी व्यवस्था को को चित्र (b) में दिखाए गए संकेत से दर्शाते हैं।
विद्युत परिपथ
चित्र(a) में दिखाई गई विधि के अनुसार ताँबे(चालक) के तार के दो टुकड़ों की सहायता से टॉर्च के एक बल्ब तथा एक शुष्क सेल(जो टॉर्च में लगता है) को जोड़ने पर बल्ब जल उठता है। परंतु,तार के किसी भी सिरे को शुष्क सेल से हटा देने पर बल्ब बुझ जाता है चित्र (b) ।
इस प्रयोग से स्पष्ट है कि विद्युत धारा का प्रवाह तभी हो सकता है जब उसका पथ पूरा हो ,अर्थात बंद (closed) हो।