एक अवतल दर्पण (concave mirror) BB' है जिसका ध्रुव (pole) P है और PC मुख्य अक्ष है|AB एक आपतित किरण है जो अवतल दर्पण के मुख्य अक्ष PC के समांतर और निकट है|परिभाषा से, किरण AB दर्पण से परावर्तन के बाद मुख्य फोकस F से होकर गुजरती है|
चूँकि, त्रिज्या CB दर्पण-सतह के भी बिंदु पर अभिलंब है, इसीलिए परावर्तन के नियम से,
∠ABC =∠CBF
किंतु, ∠ABC =∠BCF(एकांतर कोण होने के कारण)
∠CBF =∠BCF
फलस्वरूप 🔺BCF एक समद्विबाहु त्रिभुज है|
अतः, BF=FC(समद्विबाहु त्रिभुज की भुजा होने के कारण)
यदि B,P के बहुत ही निकट हो, तो BF=PF(लगभग)
इसीलिए पर=FC=PC/2
या f=R/2
जहाँ PC=R(दर्पण की वक्रता-त्रिज्या)
हम देखते है कि दर्पण चाहे अवतल हो या उत्तल, यदि आपतन बिंदु ध्रुव से बहुत दूर न हो, तो फोकस-दूरी, दर्पण की वक्रता-त्रिज्या की आधी होती है, अर्थात दर्पण का फोकस उसके ध्रुव तथा वक्रता-केंद्र के ठीक बीच में होता है|
अतः पर=FC या
PC=2PF या
R=2f
या f=R/2 सिद्ध हुआ