रंगीन पट्टी (स्पेक्ट्रम) की उत्पत्ति का कारण
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रंगीन पट्टी (स्पेक्ट्रम) की उत्पत्ति का कारण

रंगीन पट्टी(स्पेक्ट्रम) इस कारण उत्पन्न होती है कि प्रिज्म द्वारा विभिन्न वर्णों (विभिन्न तरंग दैर्ध्य) के प्रकाश का विचलन अलग-अलग होता है -लाल वर्ग (रंग) का विचलन सबसे कम और बैंगनी वर्ग(रंग) का विचलन सबसे अधिक। अर्थात, अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश का विचलन,कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश की अपेक्षा कम होता है। प्रिज्म द्वारा विभिन्न वर्णों (रंगो) के अलग-अलग विचलन का कारण यह है कि विभिन्न वर्णों (विभिन्न तरंगदैर्ध्यों) का प्रकाश काँच में विभिन्न चाल से चलता है। 

काँच में,बैगनी वर्ण (रंग) के प्रकाश की चाल,लाल वर्ण (रंग) के प्रकाश की चाल की अपेक्षा कम होती है। इसके फलस्वरूप बैंगनी वर्ण (रंग) के लिए काँच का अपवर्तनांक महत्तम होता है जबकि लाल वर्ण (रंग) के लिए इसका (अर्थात अपवर्तनांक का) मान न्यूनतम होता है। 

श्वेत प्रकाश के वर्ण (रंग) और उनका तरंगदैर्ध्य 

प्रकाश तरंग के रूप में चलता है और प्रत्येक तरंग का एक अभिलाक्षणिक तरंगदैर्ध्य(characteristic wavelength) होता है। चूँकि श्वेत प्रकाश सात वर्णों (रंगों) के प्रकाश का सम्मिश्रण है ,इसीलिए इन वर्णों (रंगों) के प्रकाश के तरंगदैर्ध्य भिन्न-भिन्न होते हैं। वास्तव में प्रकाश का वर्ण (रंग) प्रकाश-तरंग के तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है। भिन्न-भिन्न सात वर्णों(रंगों) के प्रकाश-तरंग का तरंगदैर्ध्य भिन्न-भिन्न [400 nm (बैंगनी वर्ण) से 700 nm (लाल वर्ण) के बीच, 1 नैनोमीटर(nm)=10^-9 m] होता है। नीचे तालिका में प्रकाश के विभिन्न वर्णों(रंगों) के प्रकाश के तरंगदैर्ध्य के बीच कोई सटीक सीमारेखा नहीं है। 

श्वेत प्रकाश के वर्ण (रंग) और उनका तरंगदैर्ध्य

[प्रकाश के तरंगदैर्ध्य को अन्य मात्रक ऐंगस्ट्रम(angstrom, Å]) में भी व्यक्त किया जाता है।ऐंगस्ट्रम का प्रतीक Å है और 1 Å =10^-10 m]

मानव नेत्र द्वारा वर्ण(रंग) की पहचान और अवगम(perception) नेत्र पर पड़नेवाले प्रकाश-तरंग के तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में, भिन्न-भिन्न वर्णों(रंगों) के रूप में देखता है। 

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 प्रकाश का प्रकीर्णन

प्रकाश की किरणें स्वंय अदृश्य होती है। इसीलिए जब हम किसी टार्च का स्विच दबाते हैं ,तो टार्च से निकलते प्रकाश को नहीं देख पाते। उसी प्रकार दिन में सूर्य से आती किरणों के कारण हम अपने आस-पास की चीजों को तो देख पाते हैं ,परंतु किरणों के पथ को नहीं देख पाते। हाँ ,जब प्रकाश की किरणों के पथ में धुआँ या धूलकण हों,तो उनका पथ साफ दिखता है। उदहारण के लिए ,यदि कमरे में धुआँ या धूलकण हों ,तो खिड़की के दरार या पर्दों के बीच के खाली स्थान से कमरे के अंदर आते प्रकाश का पथ हम देख पाते हैं। हम जानते हैं कि प्रकाश सीधी रेखा में चलता है। तब प्रश्न उठता है कि हम कमरे के विभिन्न स्थानों से प्रकाश के पथ को कैसे देख पाते हैं। यह तभी संभव है, जब प्रकाश उसके पथ में पड़नेवाले कणों से विभिन्न दिशाओं में छितराए। 

किसी कण पर पड़कर प्रकाश के एक अंश के विभिन्न दिशाओं में छितराने को प्रकाश का प्रकीर्णन(scattering of light) कहते हैं।
जब प्रकाश छोटे सूक्ष्म कणों पर पड़ता हैं ,तो उसका एक अंश विभिन्न दिशाओं में प्रकीर्णित होता है। प्रकाश का शेष भाग सीधे आगे निकल जाता है। 

प्रकाश के पथ में आनेवाले कणों से विभिन्न दिशाओं में प्रकीर्णित प्रकाश के कारण ही हम प्रकाश के पथ को देख पाते हैं।पथ के विभिन्न बिंदुओं से प्रकाश हमारी आँखों तक पहुँचता है और हम प्रकाश के पथ को देख पाते हैं।यही कारण है कि हम प्रकाश के पथ को विभिन्न स्थितियों(positions) से देख सकते हैं। 

किसी माध्यम में छोटे-छोटे कणों के निलंबन(suspension) को कोलॉइड(colloid) कहा जाता है। दूध एक कोलॉइड है जिसमें छोटे-छोटे वसा (fat) के कण जल में निलंबित रहते हैं। धुआँ भी एक कोलॉइड है जिसमें राख के कण हवा में निलंबित रहते हैं। कुहासा और धुँध भी कोलॉइड के उदहारण हैं जिनमें छोटी-छोटी जल की बूँदें वायु में निलंबित रहती हैं। इन सबसे होकर प्रकाश के पथ को देखा जा सकता है। 

किसी कोलॉइडीय विलयन में निलंबित कणों से प्रकाश के प्रकीर्णन को टिंडल प्रभाव(Tyndall effect) कहा जाता है।  

प्रकाश के विभिन्न रंगों का प्रकीर्णन

किसी कण से प्रकीर्णित प्रकाश का रंग उसक आकार(size) पर निर्भर करता है।अतिसूक्ष्म कण अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश की अपेक्षा कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को अधिक अच्छी तरह प्रकीर्णित करते हैं।हम जानते हैं कि नीले रंग का तरंगदैर्ध्य कम होता है और लाल रंग का अधिक।अतः जब श्वेत प्रकाश(white light) सूक्ष्म कणों पर पड़ता है तो नीले रंग का कब प्रकीर्णन अधिक होता है और लाल रंग का प्रकीर्णन बहुत कम होता है।जैसे -जैसे कणों का आकार(size) बढ़ता है,अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश का प्रकीर्णन भी बढ़ता है।बड़े कण सभी तरंगदैर्ध्य के प्रकाश का समान रूप से प्रकीर्णन करते हैं। 

जब धुएँ में राख के सूक्ष्म कण अधिक होते है,तो नीले रंग का प्रकीर्णन अधिक होता है। अतः,धुआँ हलका नीला प्रतीत होता है। बादल सफेद दिखाई पड़ते हैं,क्योंकि इसमें पानी की बूँदों का  आकार बड़ा होता है। इसे एक क्रियाकलाप द्वारा  हम और अच्छी तरह समझ सकते हैं। 

क्रियाकलाप-2 

लगभग 18-20 cm लंबे एक पारदर्शी बरतन में पानी भरते हैं। अब उस पानी में दूध की कुछ बूँदे डाल देते हैं। एक शक्तिशाली टार्च में पानी पर चित्र में दिखाए गए तरीके से प्रकाश डालते हैं। 

प्रकाश के विभिन्न रंगों का प्रकीर्णन

बरतन के एक ओर से देखने पर हम पाते हैं कि पानी-दूध के मिश्रण का रंग टार्च से दूरी के अनुसार बदलता है। टार्च के पास में उसका रंग नीला प्रतीत होता है और टार्च से अधिक दूरी पर मिश्रण का रंग नारंगी या लाल दिखाई देता है। यदि हम दूध की कुछ और बूँदें डालते हैं ,तो मिश्रण के रंग और साफ  दिखाई देते हैं। 

बरतन के दूसरी ओर से देखने पर टार्च लाल दिखाई पड़ता है। दूध के निलंबित कण नीले रंग को अधिक प्रकीर्णित करते हैं। यही कारण है कि टार्च के पास में मिश्रण नीला दिखाई पड़ता है। जैसे-जैसे प्रकाश मिश्रण में आगे बढ़ता है ,मुख्यतः लाल रंग ही बच जाता है। अतः टार्च से दूर मिश्रण का रंग नारंगी या लाल दिखाई देता है। प्रकृति में भी इसी प्रकार की परिघटना के कारण आकाश का रंग नीला और सूर्योदय और सूर्यास्त समय सूर्य लाल दिखाई देता है।

आकाश का रंग 

 सूर्य का प्रकाश जब वायुमंडल से होकर गुजरता है,तो उसका वायुमंडल का गैसों के अणुओं,पानी की बूँदों,धूलकणों आदि से प्रकीर्णन होता है। इनमें सबसे सूक्ष्म कण गैस के अणु होते हैं जो नीले रंग को अधिक प्रकीर्णित करते हैं। यही प्रकीर्णित प्रकाश हमारी आँखों तक पहुँचता है और इसीलिए हमें आकाश नीला प्रतीत होता है। 

चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं है। इसीलिए चंद्रमा पर खड़े अंतरिक्षयात्री(astronaut) को आकाश काला प्रतीत होता है ,क्योंकि वहाँ वायुमंडल नहीं होने के कारण प्रकीर्णन नहीं होता। 

सूर्य का रंग 

दिन में सूर्य का रंग समय के साथ बदलता रहता है। दोपहर को जब सूर्य सर पर होता है ,सूर्य के प्रकाश द्वारा वायुमंडल से होकर तय की गई दूरी AB न्यूनतम होती है। अतः, सूर्य का प्रकाश कम कणों से होकर गुजरता है,और इसीलिए प्रकीर्णन सबसे काम होता है। यही कारण है कि दोपहर में सूर्य अपने वास्तविक रंग(श्वेत) में दिखाई पड़ता है। 


सूर्योदय और सूर्यास्त के समय,वायुमंडल से होकर सूर्य के प्रकाश को अधिक दूरी CB तय करनी पड़ती है और इसे अधिक कणों से होकर गुजरना पड़ता है,जो मुख्यतः नीले रंग को प्रकीर्णित कर देते हैं। अतः, जो बचा हुआ प्रकाश हमारी आँखों तक आता है उसमें मुख्यतः लाल रंग होता है। यही कारण है कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई पड़ता है।

 

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