प्रतिरोध (Resistance)
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प्रतिरोध (Resistance)

चित्र में दिखाई गई विधि के अनुसार परिपथ पूरा करते हैं। बिंदु P और Q  के बीच बारी-बारी से एक ताँबे का तार,एक लोहे का तार,एक एलुमिनियम का तार जोड़कर प्रत्येक बार परिपथ से प्रवाहित होनेवाली धारा का मान ऐमीटर से नोट कर लेते हैं। हम पाते हैं कि प्रत्येक बार परिपथ से प्रवाहित होनेवाली धारा का मान भिन्न-भिन्न होता है। इससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि परिपथ में धारा का मान परिपथ के अवयवों पर निर्भर करता है। 

प्रतिरोध (Resistance)

कुछ पदार्थ अपने से होकर दूसरे पदार्थों की अपेक्षा कम धारा प्रवाहित होने देते हैं। दूसरे शब्दों में ,कुछ पदार्थ धारा के प्रवाह में अन्य पदार्थों की तुलना में अधिक प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं। 

किसी पदार्थ का वह गुण जो उससे होकर धारा के प्रवाह का विरोध करता है,उस पदार्थ का विद्युत प्रतिरोध या केवल प्रतिरोध (resistance) कहलाता है।
निश्चित विभवांतर पर किसी चालक से कम धारा प्रवाहित होती है तो चालक का प्रतिरोध अधिक होता है। इसके विपरीत ,यदि चालक से अधिक धारा प्रवाहित होती है, तो चालक का प्रतिरोध कम होता है। 

किसी चालक में विद्युत-धारा प्रवाहित करने के लिए उसके सिरों के बीच विभवांतर उत्पन्न करना आवश्यक है।  किसी चालक का प्रतिरोध R उसके सिरों के बीच विभवांतर V और उसमें प्रवाहित धारा I का अनुपात है।अर्थात ,

R =V/I

प्रतिरोध का SI मात्रक -

प्रतिरोध का SI मात्रक ओम(ohm) होता है जिसे ग्रीक भाषा के बड़े वर्णाक्षर Ω(omega) द्वारा दर्शाया जाता है। चूँकि विभवांतर का SI मात्रक वोल्ट(V) तथा का SI मात्रक ऐम्पियर(A) होता है ,

अतः 

प्रतिरोध का SI मात्रक -

यदि किसी चालक के सिरों पर 1 वोल्ट(V) का विभवांतर लगाने से चालक में ऐम्पियर (A) की धारा प्रवाहित हो,तो चालक का प्रतिरोध 1 ओम (Ω) कहा जाता है। 

बहुत कम प्रतिरोध वाले पदार्थों को जिनमें से आवेश आसानी से प्रवाहित होता है चालक(conductor) कहा जाता है,जैसे -चाँदी,ताँबा आदि। उच्च प्रतिरोध वाले पदार्थों को प्रतिरोधक(resistor) कहा जाता है। बहुत ही अधिक प्रतिरोध वाले पदार्थों को जिनसे आवेश प्रवाहित नहीं हो पाता,विद्युतरोधी(insulator) कहते हैं। रबर (rubber),प्लैस्टिक ,एबोनाइट,लकड़ी इत्यादि विद्युतरोधी पदार्थ हैं। 

यहाँ यह ध्यान रहे कि प्रतिरोधक(resistor) एक युक्ति(device) है और प्रतिरोध(resistance) उसका एक गुण(property) है। 


विद्युत-परिपथ आरेखों में प्रतिरोधक को चित्र में दिखाए गए संकेत(प्रतीक) से दर्शाया जाता है। इस प्रतिरोधक का प्रतिरोध R है। 

प्रतिरोधक का संकेत

किसी चालक तार का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है।अर्थात-

1. तार की लंबाई पर - किसी तार का प्रतिरोध R उसकी लंबाई l के समानुपाती होता है। अर्थात ,

R ∝ l अतः ,तार की लंबाई जितनी अधिक होगी उसका प्रतिरोध उतना ही अधिक होगा। 

2. तार की मोटाई पर - किसी तार का प्रतिरोध R उसके अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती(inversely proportional) होता है।अर्थात ,

R ∝ 1/A 

 R inversely proportional to one by A

अतः,तार जितना ही मोटा होगा उसका प्रतिरोध उतना ही कम होगा,तथा तार जितना ही पतला होगा उसका प्रतिरोध उतना ही अधिक होगा।

3. चालक के पदार्थ पर -यदि विभिन्न पदार्थों के तार समान लंबाई और समान मोटाई के हों, तो उनके प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होंगें। 

4. चालक के ताप पर - ताप बढ़ने से चालक का प्रतिरोध बढ़ता है। 

इस प्रकार ,यदि किसी तार की लंबाई  l हो तथा अनुप्रस्थ-काट का क्षेत्रफल A हो ,तो उपर्युक्त कथनों के अनुसार किसी तार का प्रतिरोध 

R ∝ l /A 

या R = (l×⍴)/A ......... (1)

जहाँ, ⍴(रो ,rho) दिए गए ताप पर तार के पदार्थ के लिए नियतांक(स्थिरांक) है। इसे चालक तार के पदार्थ की प्रतिरोधकता(resistivity) कहते हैं। 

प्रतिरोधकता का SI मात्रक - समीकरण 1 से ,

प्रतिरोधकता का SI मात्रक

अतः,प्रतिरोधकता का SI मात्रक =ओम मीटर (Ωm). 

प्रतिरोधकता पदार्थों का एक महत्त्वपूर्ण गुण है। धातु एवं मिश्रधातु(alloys) की प्रतिरोधकता बहुत कम होती है ,जबकि विद्युतरोधी पदार्थों की प्रतिरोधकता का मान अत्यधिक होता है। निचे के तालिका में कुछ धातु, मिश्रधातु और विद्युतरोधी पदार्थों की प्रतिरोधकता के मान दिए गए हैं। 

नीचे के तालिका से स्पष्ट है कि 

(a) चाँदी की प्रतिरोधकता अन्य सभी पदार्थों की तुलन में सबसे कम है। अतः ,इन सभी में चाँदी सबसे अच्छा चालक है। 
(b) लोहा से पारे की प्रतिरोधकता अधिक है। अतः ,पारे की अपेक्षा लोहा अधिक अच्छा विद्युत चालक है।
प्रतिरोधकता का SI मात्रक


 प्रतिरोधकों का समूहन 
दो या दो से अधिक प्रतिरोधकों को एक दूसरे से कई विधियों द्वारा जोड़ा जा सकता है। इनमें दो विधियाँ मुख्य हैं -
(1) श्रेणीक्रम समूहन (series grouping) तथा 
(2) समांतरक्रम या पार्श्वक्रम समूहन (parellel grouping)

 (1) श्रेणीक्रम समूहन (series grouping):-

चित्र में  AB,BC और CD तीन प्रतिरोधक श्रेणीक्रम में जुड़े दिखाएगए हैं। उनके प्रतिरोध क्रमशः  R1, R2 ,R3 है। इनके मुक्त सिरे A और  D बैटरी के ध्रुवों से जुड़ें हैं। 
श्रेणीक्रम समूहन (series grouping)

मान लिया कि तीनों प्रतिरोधकों से धारा I प्रवाहित हो रही है और प्रतिरोधक AB,BC एवं CD के सिरों के बीच विभवांतर क्रमशः V1,V2 ,V3   हैं।अतः, ओम के नियम से ,
V1=IR1 ,V2=IR2 तथा V3=IR3
यदि  बैटरी का विभवांतर V हो ,अर्थात यदि सिरों A एवं D के बीच विभवांतर V हो ,तो   
V =V1 + V2 + V3 =IR1 +IR2 +IR3
      = I(R1 +R2 +R3) (i)
इस समूहन का समतुल्य प्रतिरोध (Equivalent Resistance) उस अकेले प्रतिरोधक के प्रतिरोध बराबर होता है ,जिसे यदि जुड़े हुए तीनों प्रतिरोधकों के स्थान पर लगा दिया जाए तो विद्युत-परिपथ से  प्रवाहित धारा पर कोई प्रभाव न पड़े। मान लिया कि A एवं D के बीच समतुल्य प्रतिरोध Rहै।अतः ,ओम के नियम से ,
V =IRs   ......... (ii)
समीकरण (i) एवं (ii) की तुलना करने पर ,
IRs= I(R1 +R2 +R3
∴  Rs= (R1 +R2 +R3
अर्थात ,श्रेणीक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है। 

पार्श्वक्रम या समांतरक्रम समूहन(parallel groping)

 चित्र में बिंदु A एवं B के बीच तीन प्रतिरोधक,जिनके प्रतिरोध क्रमशः R1 ,R2 ,R3 हैं ,पार्श्वक्रम या समांतरक्रम में जुड़े हुए दिखाए गए हैं।बैटरी द्वारा परिपथ में प्रवाहित धारा I है।बिंदु A पर यह धारा तीन भागों में बँट जाती है।मान लिया कि R1,R2 एवं R3 प्रतिरोध वाले  प्रतिरोधकों से क्रमशः I1,I2 तथा I3 धारा प्रवाहित होती है।बिंदु B पर तीनों धाराएँ मिलकर पुनः मुख्य धारा I बन जाती जाती हैं।अतः ,

पार्श्वक्रम या समांतरक्रम समूहन(parallel groping)
अर्थात,पार्श्वक्रम या समांतरक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम(reciprocal) उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधकों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है। 
 
प्रतिरोधकों के श्रेणीक्रम तथा पार्श्वक्रम या सामंतरक्रम समूहन की तुलना 
प्रतिरोधकों के श्रेणीक्रम तथा पार्श्वक्रम या सामंतरक्रम समूहन की तुलना

 पार्श्वक्रम या सामंतरक्रम में जुड़े दो प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध और उन प्रतिरोधकों में विद्युतधारा का वितरण 
चित्र में एक परिपथ दिखाया गया है;जिसमें दो प्रतिरोधकों,जिनके प्रतिरोध क्रमशः R1 ,R2 हैं,को पार्श्वक्रम या समांतरक्रम में जोड़कर इस संयोजन को एक बैटरी से जोड़ दिया गया है।यदि इस संयोजन का समतुल्य प्रतिरोध Rp हो,तो 
पार्श्वक्रम या सामंतरक्रम में जुड़े दो प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध और उन प्रतिरोधकों में विद्युतधारा का वितरण

यदि परिपथ में कुल विद्युत-धारा I हो और दोनों प्रतिरोधकों में विद्युत-धारा क्रमशः I एवं I हों तो 
I = I1 +I
 ओम केनियम से R1 प्रतिरोध वाले प्रतिरोधक के दोनों सिरों के बीच विभवांतर 
V =I1R
तथा R2 प्रतिरोध वाले प्रतिरोधक के दोनों सिरों के बीच विभवांतर 
V =I2 R2  
परंतु,पार्श्वक्रम या समांतरक्रम में जुड़े प्रतिरोधकों के सिरों के बीच विभवांतर समान होता है। 
अतः , I1R1 = I2 R2
vidhyut dhara


 

 
 
 

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