अवायवीय श्वसन और वायवीय श्वसन के विभेदों को स्पष्ट करें।
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अवायवीय श्वसन और वायवीय श्वसन के विभेदों को स्पष्ट करें।

अवायवीय श्वसन एवं वायवीय श्वसन में निम्नलिखित मुख्य विभेद है-

 अवायवीय श्वसन 

 वायवीय श्वसन 

 1. वायवीय श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है।

 अवायवीय श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।

 2. वायवीय श्वसन का प्रथम चरण कोशिकाद्रव्य में तथा द्वितीय चरण माइटोकॉण्ड्रिया में पूरा होती है।

 अवायवीय श्वसन की पूरी क्रिया कोशिकाद्रव्य में होती है।

 3.वायवीय श्वसन में ग्लूकोस का पूर्ण ऑक्सीजन (विखंडन) होता है तथा कार्बनडाईऑक्साइड एवं जल का निर्माण होता है।

 अवायवीय श्वसन में ग्लूकोस का आंशिक ऑक्सीकरण होता है एवं पाइरुवेट,एथेनॉल या लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है।

 4. वायवीय श्वसन में अवायवीय श्वसन की मुकाबले बहुत ज्यादा ऊर्जा मुक्त होती है।

 4. वायवीय श्वसन में अवायवीय श्वसन की मुकाबले कम ऊर्जा मुक्त होती है।

 पायरुवेट के विखंडन के विभिन्न पथों के बारे में लिखे। 

उत्तर - पायरुवेट के विखंडन निम्नलिखित तीन प्रकार से हो सकती है। 

  1. पायरुवेट ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में इथेनॉल (ethanol) एवं कार्बन डाईऑक्साइड में परिवर्तन हो जाता है जो यीस्ट (yeast) में होता है। 
  2. ऑक्सीजन के अभाव में हमारी पेशियों में पाइरुवेट से लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है। हमारी पेशी कोशिकाओं में अधिक मात्रा में लैक्टिक अम्ल के संचय से दर्द होने लगता है।बहुत ज्यादा चलने या दौड़ने के बाद हमारी मांसपेशियों में इसी कारण ऐंठन (cramp) या तकलीप होती है। 
  3. ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरुवेट का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है एवं कार्बन डाईऑक्साइड तथा जल का निर्माण होता है।चूँकि यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है ,अतः इसे वायवीय श्वसन कहते है। 

स्थलीय कीटों में श्वसन अंग की रचना तथा श्वसन विधि का वर्णन करें। 

उत्तर - स्थलीय कीटों स्थलीय कीटों में जैसे टिड्डा तथा तिलचट्टा में श्वसन ट्रैकिया द्वारा होता है। ट्रैकिया शरीर के भीतर स्थित अत्यंत शाखित,हवा-भरी नलिकाएँ हैं जो एक ओर सीधे ऊतकों के संपर्क में होती हैं तथा दूसरी ओर शरीर की सतह पर श्वासरंध्र नामक छिद्रों के द्वारा खुलती हैं। 

रचना:-

स्थलीय कीटों में श्वसन अंग की रचना तथा श्वसन विधि का वर्णन करें।

श्वसन विधि -  कीटों में ट्रैकिया के द्वारा श्वसन में गैसों का आदान-प्रदान रक्त या रुधिर के माध्यम से नहीं होता है। इसका कारण यह है कि कीटों के रक्त में हीमोग्लोबिन या उसके जैसे कोई रंजक जिसमें ऑक्सीजन को बाँधने की क्षमता हो,नहीं पाए जाते हैं। 

मछली के श्वसन अंग की संरचना तथा श्वसन विधि का वर्णन करें। 

उत्तर -मछली के श्वसन अंग गिल्स है गिल्स विशेष प्रकार के श्वसन अंग हैं जो जल में घुलित ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं। श्वसन के लिए गिल्स का होना मछलियों के विशेष लक्षण हैं। 

रचना-

मछली के श्वसन अंग की संरचना तथा श्वसन विधि का वर्णन करें।

श्वसन विधि - प्रत्येक मछली में गिल्स दो समूहों में पाए जाते हैं। गिल्स के प्रत्येक समूह सिर के पार्श्व भाग (lateral side) में आँख के ठीक पीछे स्थित होते हैं। प्रत्येक समूह में कई गिल्स आगे से पीछे की ओर शृंखलाबद्ध तरीके से व्यवस्थित होते हैं। हर गिल एक चपटी थैली में स्थित होता है जिसे गिल कोष्ठ कहते हैं। गिल कोष्ठ एक ओर आहारनाल की ग्रसनी या फैरिंक्स में खुलता है। प्रत्येक गिल कोष्ठ में कई गिल पालिकाएँ होती हैं।  

मछलियों में जल की धारा मुख से आहारनाल के फैरिंक्स में पहुँचता है। यहाँ जल की धारा में स्थित भोजन तो फैरिंक्स से ग्रासनली में चला जाता है, परन्तु जल गिल कोष्ठों में तथा फिर शरीर के बाहर चला जाता है। इस प्रकार,गिल्स लगातार जल के संपर्क में रहते हैं जिससे जल में घुले ऑक्सीजन गिल्स की रक्त वाहनियों में स्थित रक्त में चला जाता है। इस प्रकार, श्वसन गैसों (ऑक्सीजन तथा कार्बन डाईऑक्साइड ) का आदान-प्रदान रक्त और जल के बीच विसरण के द्वारा होता रहता है। कुछ अकशेरुकी जलीय श्वसन गिल्स द्वारा ही होता है। इस प्रकार का श्वसन जलीय श्वसन कहलाता है।

 


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