जैव प्रक्रम : पोषण के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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जैव प्रक्रम : पोषण के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Q.पोषण किसे कहते हैं ? जीवों में होनेवाली विभिन्न पोषण विधियों का उल्लेख करें। 

वह विधि जिससे जीव पोषक तत्त्वों को ग्रहण कर उनका उपयोग करते हैं,पोषण कहलाता है। 

 पोषण की विधियाँ 

जीवों में पोषण मुख्यतः दो विधियों द्वारा होता है -

(i) स्वपोषण (Autotrophic nutrition)

(ii) परपोषण (Hetrotrophic nutrition)

पोषण किसे कहते हैं ? जीवों में होनेवाली विभिन्न पोषण विधियों का उल्लेख करें।

(i) स्वपोषण (Autotrophic nutrition):- ऑटोट्राफ(autotroph) शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों,ऑटो और ट्रॉफ के मेल से हुई है। ऑटो शब्द का अर्थ 'स्व' या 'स्वतः' (auto =self) होता है तथा ट्रॉफ का अर्थ होता है 'पोषण' (troph=nutrition)। अतः,

 ऐसे जीव जो भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्वंय संश्लेषित करते हैं, स्वपोषी या ऑटोट्रॉफ्स(autotrophs) कहलाते हैं। 

सभी हरे पौधे स्वपोषी होते हैं। इन पौधों में एक प्रकार की रचना हरितलवक या क्लोरोप्लास्ट(chloroplast) पाई जाती है। क्लोरोप्लास्ट में हरे रंग का वर्णक (pigment) जिसे पर्णहरित या क्लोरोफिल(chlorophyll) कहते हैं,पाया जाता है। क्लोरोफिल के उपस्थिति के कारण ही पौधों का रंग हरा दिखता है। ऐसे हरे पौधे सूर्य के कार्बन डाईऑक्साइड(CO2) तथा जल (H2O) के द्वारा अपने भोजन कार्बोहाइड्रेट(कार्बनिक पदार्थ) का संश्लेषण करते हैं।इस प्रक्रिया को प्रकाशसंश्लेषण (photosynthesis) कहते हैं। 

(ii) परपोषण (Hetrotrophic nutrition):-क्लोरोफिल कीअनुपस्थिति के कारण समस्त जंतु तथा कवक(fungi) पौधों की तरह अपना भोजन स्वंय संश्लेषित करने में सक्षम नहीं होते हैं।अतः भोजन के लिए ये पूर्णरूप से अन्य जीवों पर निर्भर होते हैं।ऐसे जीव जो अपने भोजन के लिए किसी-न-किसी रूप में अन्य जीवों पर आश्रित होते हैं,परपोषी या हेटरोट्रॉफ्स(hetrotrophs) कहलाते हैं। हेटरोट्रॉफ्स शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों,हेटरो और ट्रॉफ्स के मेल से हुई है।हेटरो शब्द का अर्थ 'विषम','भिन्न' या 'पर'(hetero=different or other) तथा ट्रॉफ शब्द का अर्थ 'पोषण'(troph=nutrition) है।अतः, 

परपोषण वह प्रक्रिया है जिसमें जीव अपना भोजन स्वंय संश्लेषित न कर किसी-न-किसी रूप में अन्य स्रोतों से प्राप्त करते हैं। 

स्वपोषण और परपोषण में मूल अंतर यह है कि स्वपोषण में जीव सरल अकार्बनिक अणुओं से जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेषण करते हैं, परन्तु परपोषण में जंतुओं द्वारा ग्रहण किए गए जटिल कार्बनिक अणुओं का विभिन्न जैविक क्रियाओं द्वारा सरल कार्बनिक अणुओं में निम्नीकरण (degration or breakdown) होता है। 

परपोषण के प्रकार -

परपोषण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते है। 

1. मृतपोषी पोषण (saprophytic nutrition)- ग्रीक शब्द सैप्रोस अर्थ अवशोषण (sapros =to absorb) होता है। अतः,

इस प्रकार के पोषण में जीव मृत जंतुओं और पौधों के शरीर से अपना भोजन,अपने शरीर की सतह से, घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में अवशोषित करते हैं। 

वैसे जीव  भोजन मृतजीवी पोषण के द्वारा प्राप्त करते हैं,मृतजीवी या साईप्रोफाइट्स(saprophytes) कहलाते हैं। 

अनेक कवकों,बैक्टीरिया तथा कुछ प्रोटोजोआ में पोषण इसी विधि से होता है। मृतजीवी अपना भोजन मुख्यतः तरल अवस्था में ही अवशोषण (absorption) के द्वारा ग्रहण करते हैं। 

मृतिजीवी पोषण का प्रकृति में बहुत अधिक महत्त्व है। जंतुओं और पौधों की मृत्यु के पश्चात उनके मृत शरीर को,मृतजीवी अपघटित (decompose) कर,अर्थात सड़ा-गलाकर उनके मूल तत्त्वों में बदल देते हैं। ऐसे मूल तत्त्व पुनः मिट्टी में प्रतिस्थापित हो जाते हैं और उत्पन्न गैस वातावरण में मिल जाती है। इन तत्त्वों को फिर से हरे पौधे मिट्टी से ग्रहण कर अपने उपयोग में लाते हैं। यही चक्र प्रकृति में निरंतर चलता रहता है। इसी कारण मृतजीवी अपघटक (decomposer) भी कहलाते है। 

2.परजीवी पोषण (parasitic nutrition)- पारासाइट शब्द दो ग्रीक शब्दों, पारा और साइटोस के मेल से बना है। पारा का अर्थ 'पास','बगल' या 'पार्श्व' में (पारा =beside) तथा साइटोस का अर्थ 'पोषण'(sitos=nutrition) होता है। 

इस प्रकार के पोषण में जीव दूसरे प्राणी के संपर्क में,स्थायी या अस्थायी रूप में रहकर,उससे अपना भोजन प्राप्त करते हैं। 

ऐसे जीवों का भोजन अन्य  प्राणी के शरीर में मौजूद कार्बनिक पदार्थ होता है। इस प्रकार,भोजन करनेवाले जीव परजीवी(parasite) कहलाते है और जिस जीव के शरीर से परजीवी अपना भोजन प्राप्त करते हैं,वे पोषी (host) कहलाते हैं। परजीवी पोषण अनेक प्रकार के कवक,जीवाणु ,कुछ पौधों,जैसे अमरबेल तथा कई जंतुओं ;जैसे -गोलकृमि ,हुकवर्म,टेकवर्म,एंटअमीबा हिस्टोलीटिका,मलेरिया परजीवी आदि में पाया जाता है। 

सभी परजीवियों के भोजन में समरूपता नहीं होती है।परजीवियों के द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण किए जानेवाले कार्बनिक पदार्थ सामान्यतः तरल रूप में होते है। 

3. प्राणिसम पोषण (Holozoic nujtrition)- होलोजोइक शब्द दो ग्रीक शब्दों ,होलो और जोइक के मेल से बना है।होलो शब्द का अर्थ 'पूरी तरह'(holo=complete) तथा जोइक का अर्थ 'जंतु जैसा'(zoic =animal-like) होता है।अर्थात ,

वैसा पोषण जिसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते करते हैं ,प्राणिसम पोषण (holozoic nutrition) कहलाता है। 

वैसे जीव जिनमें इस विधि से पोषण होता है,प्राणिसमभोजी कहलाते हैं। इस प्रकार के पोषण सामान्यतः जंतुओं का लक्षण है तथा यह अमीबा,मेंढ़क ,मनुष्य आदि में पाया जाता है। 

जीवों मे पोषण प्राप्त करने की विधियाँ

अपनी आवश्यकताओं के अनुसार जीवों में अलग-अलग प्रकार के पोषकों की जरुरत होती है जिसे प्राप्त करने के तरीके भी जीवों में विभिन्न तरह के होते हैं। एककोशकीय जीवों में कोशिका के सम्पूर्ण सतह से खाद्य पदार्थ ग्रहण  किया जाता है जबकि बहुकोशकीय एवं जटिल जीवों में इसके लिए खास अंग होते हैं। 

Q. प्रकाशसंश्लेषण-प्रक्रिया को संक्षेप में समझाएँ।

प्रकाशसंश्लेषण क्या है ?

जिस प्रक्रिया द्वारा पौधे अपना भोजन तैयार करते हैं उस मूलभूत प्रक्रिया को प्रकाशसंश्लेषण कहते हैं।सभी हरे पौधें में पर्णहरित (chlorophyll) होता है जिसमें सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करने की क्षमता होती है।

 Q.प्रकाशसंश्लेषण-प्रक्रिया के लिए किन-किन पदार्थों की आवश्यकता होती है?

उत्तर:-

सूर्य की ऊर्जा की सहयता से प्रकाशसंश्लेषण में सरल अकार्बनिक -कार्बन डाइऑक्साइड(CO2) और जल(H2O) का पादप-कोशिकाओं में स्थिरीकरण(fixation) कार्बनिक अणु ग्लूकोस (कार्बोहाइड्रेट) में होता है। 

पौधे इस क्रिया द्वारा सिर्फ ग्लूकोस का ही उत्पादन नहीं करते हैं ,वरन वे सूर्य -प्रकाश की विकिरण ऊर्जा का भी स्थिरीकरण रासायनिक ऊर्जा में करते हैं, जो ग्लूकोस अणुओं  संचित रहती है।

सम्पूर्ण प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया को हम निम्नलिखित रासायनिक समीकरण द्वारा व्यक्त करते हैं। 

CO2 +12H2O⟶C6H12O6 +6O2 + 6H2

उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन उपोत्पाद (by-product) के रूप में बनता हैं,जो पौधों द्वारा वायुमंडल में छोड़ा जाता है। 

प्रकाशसंश्लेषण का स्थान 

प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया आदि से अंत तक क्लोरोप्लास्ट में ही होता है। पत्तियों के पैलिसेड तथा स्पंजी पैरेनकाइमा (spongy parenchyma) में अनेक क्लोरोप्लास्ट भरे रहते हैं। इन कणों की रचना एवं कार्य दोनों ही बड़े जटिल होते हैं। 

क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल वर्णक पाए जाते हैं। चूँकि ये अधिकांशतः पौधे की पत्तियों में पते जाते हैं, इसीलिए पत्तियों को प्रकाशसंश्लेषी अंग (photosynthetic organs) कहते हैं वं हरितलवकों को प्रकाशसंश्लेषी अंगक (photosynthetic organelles) कहते हैं। 

पत्तियों की बाह्य त्वचा या एपिडर्मिस में रंध्र या स्टोमाटा(stomata) मौजूद होते हैं। ये विशिष्ट कोशिकाएँ होती हैं जिनके मध्य में एक छिद्र होता है। ये छिद्र बंद और खुल सकते हैं तथा जिनका नियंत्रण द्वार कोशिकाओं या गार्ड सेल्स (guard cells) द्वारा होता है। इन्हीं रंध्रों द्वारा वायुमंडल से CO2 युक्त वायु पत्तियों के भीतर कोशिकाओं में विसरण या  डिफ्यूजन(diffusion) द्वारा पहुँचती है। रंध्रों का खुलना एवं बंद होना द्वार कोशिकाओं की स्फीति(turgidity) पर निर्भर करता है। जब द्वार कोशिकाएँ जल अवशोषित कर फूल जाती हैं तो रंध्र खुल जाता है। इसके विपरीत,जब द्वार कोशिकाओं का जल बाहर निकल जाता है तथा ये सिकुड़ जाती हैं रंध्र बंद हो जाता है। 

प्रकाशसंश्लेषण का स्थान

प्रकाशसंश्लेषण का स्थान

प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक पदार्थ (घटक)

प्रकाशसंश्लेषण के लिए चार पदार्थों होती है -

  1. पर्णहरित या क्लोरोफिल 
  2. कार्बन डाई ऑक्साइड 
  3. जल और 
  4. सूर्य-प्रकाश 

1.  पर्णहरित या क्लोरोफिल -हम जानते हैं कि प्रकाश-संश्लेषण-प्रक्रिया केवल हरे पादपों में होता हैं।पर ,वास्तव में पौधे का हरा होना आवश्यक नहीं है,क्योंकि लाल और भूरे रंग के पौधों में भी प्रकाशसंश्लेषण-प्रक्रिया होती है,जैसे कुछ समुद्री घास या अन्य पौधे।अतः,प्रकाशसंश्लेषण-प्रक्रिया में पौधे का रंग उतना महत्त्व नहीं रखता जितना कि पादप-कोशिकाओं के भीतर हरे वर्णक पर्णहरित या क्लोफिल की उपस्थिति।अतः,प्रकाशसंश्लेषण की में ही संभव है।चूँकि क्लोरोफिल ही वह वास्तविक अनु है जिसके द्वारा प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया संपन्न होती है,अतः क्लोरोफिल अणुओं को प्रकाशसंश्लेषी इकाई (photosynthetic units) कहते हैं। 

Q.एक प्रयोग द्वारा दर्शाएँ कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।

उत्तर:- प्रकाशसंश्लेषण में क्लोरोफिल आवश्यक है -

 एक क्रोटन (croton) या कोलियस (Coleus) की चित्तीदार पत्ती को तोड़ें। उसकी हरी और सफेद चित्तियों (spots) को रेखांकित करें। इस पत्ती को बीकर में रखे पानी में डालकर कुछ देर उबालें और उबालने के पश्चात उसे गर्म ऐल्कोहॉल वाले बीकर को वाटर बाथ (water bath) में रखकर उबालें। थोड़ी देर में आप देखेंगे कि स्प्रिट हरे रंग का होता जा रहा है ;क्योंकि पत्ती में मौजूद हरा वर्णक क्लोरोफिल पत्ती से निकलकर धीरे-धीरे ऐल्कोहॉल में घुल जाता है। जब पत्ती रंगहीन ,अर्थात हलके पीले रंग की या सफेद हो जाए तो बीकर को ठंडा होने के लिए छोड़ दें। ठंडा होने के बाद पत्ती को पानी में अच्छी तरह से धो डालें। इसके बाद इस पत्ती को पेट्रीडिश (petri dish) में रखकर उसपर आयोडीन की कुछ बूँदें डालें। आप पाएँगें कि पत्ती का हरी चित्तियोंवाला भाग नीला नहीं होता है।इसका अर्थ यह हुआ कि सफ़ेद भाग पर आयोडीन का कोई असर नहीं हुआ। ऐसा क्यों हुआ ?हरी चित्तियोंवाले भाग में चूँकि क्लोरोफिल मौजूद था,इसीलिए उस हिस्से में प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया हुयी,जिससे उसमें मंद का निर्माण भी हुआ,परन्तु पत्ती के सफेद चित्तियोंवाले भाग में क्लोरोफिल अनुपस्थित होता है,इसीलिए उस भाग में न तो प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया हुई और न ही मंद या स्टार्च का निर्माण। हुआ इससे  साबित होता है कि बिना क्लोरोफिल के प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया संपन्न नहीं हो सकती। 

Q.एक प्रयोग द्वारा दर्शाएँ कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।

2. कार्बन डाईऑक्साइड - 

प्रकाशसंश्लेषण में पौधे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। पौधे इस आवश्यक CO2 को अपने वातावरण से प्राप्त करते हैं। CO2 का सबसे बड़ा भंडार वायुमंडल है। परंतु, वायुमंडल में इसके अलावा और  भी गैसें अलग-अलग मात्रा में मौजूद होती हैं।वायुमंडल में सामान्य रूप से CO2 0.03%,अर्थात 10,000 भाग में से 3 भाग CO2 मौजूद होता है। इसके अलावा लकड़ी,कोयले ,ईंधनों के जलने से,जीवाणुओं के द्वारा अपघटन (decomposition) से,श्वसन क्रिया आदि से CO2 वायुमंडल में मुक्त होता है। 

Q. प्रकाश संश्लेषण के लिए साबित CO2 आवश्यक है,इसे साबित करने के लिए एक प्रयोग का वर्णन करें। -

प्रकाशसंश्लेषण के लिए CO2 आवश्यक है - एक लंबी पत्तीवाले पौधे को,जो गमले में लगा हो,दो दिनों तक अँधरे में रख दें। इससे इस पौधे में प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया नहीं हो पाएगी और पत्तियों में स्टार्च नहीं बनेगा। अब एक चौड़े मुँह की बोतल में थोड़ा-सा कास्टिक पोटाश (KOH) का सांद्र घोल ले लें। बोतल के कॉर्क को बीचोबीच काटकर दो टुकड़ों में बाँट दें और टुकड़ों के बीच पत्ती को इस प्रकार दबाकर डालें कि पत्ती का आधा भाग बोतल के अंदर हो और पत्ती का आधा भाग बोतल  बाहर। उपकरण को कुछ घंटों के लिए सूर्य की रोशनी में छोड़ दें। करीबन चार घंटों के बाद पत्ती को बोतल बाहर निकलकर तोड़ लें एवं स्टार्च की मौजूदगी की जाँच करें। इसके लिए पत्ती को ऐल्कोहॉल में थोड़ी देर तक उबाल लें। जब पत्ती रंगहीन हो जाए तब इसे पानी से धोकर आयोडीन के घोल में डूबा दें। आप पाएँगे कि पत्ती का वह भाग जो बोतल के बाहर था,गाढ़ें नीले रंग का जाता है तथा जो भाग अंदर था, वह हलके पीले रंग का हो जाता है तथा जो भाग अंदर था,वह हलके पीले रंग का हो जाता है। इसका कारण यह है कि आयोडीन स्टार्च को नीला कर देता है। पत्ती का वह भाग जो बोतल के अंदर था,नीला नहीं होगा ;क्योंकि पोटाश का घोल कार्बन डाईऑक्साइड को सोख लेता है जिससे पत्ती के भीतरी भाग में स्टार्च नहीं बन पाता है। इस प्रयोग से यह साबित होता है कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए कार्बनडाईऑक्साइड आवश्यक है। 

3. जल - 

पौधे अपने भोजन का अधिकतर भाग जल से प्राप्त करते हैं तथा जल के ही कारण उनमें वृद्धि होती है। प्रकाशसंश्लेषण के लिए यह एक अनिवार्य घटक है। किसी एक सरल प्रयोग द्वारा जल की अनिवार्यता को दर्शाना कठिन है। नियमित रूप से अगर पौधों को जल न मिले तो वे मर जाते हैं,लेकिन यह अन्य कारणों से भी हो सकता है।  इसीलिए ,किसान अपने खेतों  लगी फसलों की नियमित सिंचाई करते हैं। यह इसीलिए आवश्यक है कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए पौधों को नियमित रूप से जल उपलब्ध हो। पौधे अपनी जड़ों द्वारा भूमि से जल और साथ-साथ उसमें घुले खनिज लवणों (नाइट्रोजन,फॉस्फोरस,कैल्सियम,मैग्नीशियम ,लोहा आदि के यौगिकों) का अवशोषण करते हैं। नाइट्रोजन से प्रोटीन एवं अन्य यौगिकों का संश्लेषण होता है। जड़ों द्वारा ग्रहण किया गया जल जाइलम उत्तकों (xylem tissues) द्वारा पौधों के विभिन्न भागों एवं पत्तियों में पहुँचता है जहाँ प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया में इसका उपयोग होता है। जलीय पौधे पानी एवं लवणों का अवशोषण अपने बाहरी हिस्से से आसानी से कर लेते हैं। 

4. सूर्य-प्रकाश -

प्रयोग द्वारा यह साबित हुआ कि  हरे पौधे केवल सूर्य के प्रकाश में ही कार्बन डाईऑक्साइड को शुद्ध करते हैं। अँधेरे(dark) में प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया संपन्न नहीं हो सकती हैं ;क्योंकि सूर्य की रोशनी ही इस प्रक्रिया के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करती है। 

हरित पौधें में पाए जानेवाले हरितलवकों में मौजूद क्लोरोफिल ही सूर्य-प्रकाश में मौजूद सौर ऊर्जा (solar energy) या विकिरण ऊर्जा (radiant energy) को ट्रैप या विपाश कर सकते हैं एवं उसे रासायनिक ऊर्जा में बदलकर संश्लेषित ग्लूकोस के अणुओं में इसका समावेश करते हैं। 

प्रकाशसंश्लेषण की क्रियाविधि -

प्रकाशसंश्लेषण की जटिल क्रिया में हरे पौधे विकिरण ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। जब सूर्य का प्रकाश हरी पत्तियों पर पड़ता है तब क्लोरोफिल विकिरण ऊर्जा का अवशोषण करता है तथा इस ऊर्जा द्वारा पत्तियों में उपस्थित जल दो भागों,अर्थात हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभक्त हो जाता है। इनमें ऑक्सीजन स्टोमाटा द्वारा बाहर निकलकर वायुमंडल में मिल जाता है। हाइड्रोजन कार्बन डाईऑक्साइड से मिलकर ग्लूकोस बनाता है।

प्रकाश संश्लेषण के लिए साबित CO2 आवश्यक है,इसे साबित करने के लिए एक प्रयोग का वर्णन करें।

 

प्रकाशसंश्लेषण की पूर्ण क्रियाविधि में प्रकाश की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन प्रकाश जल को विभक्त करने में यानी जल का प्रकाशिक-अपघटन (photolysis of water) के लिए आवश्यक है।प्रकाशसंश्लेषण के इस प्रथम चरण को प्रकाश अभिक्रिया (light reaction) कहते हैं।इसके बाद की प्रतिक्रिया जिसमें प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद (products of light reaction) का CO2 के अपचयन में काम आता है और जिसमें फलस्वरुप ग्लूकोस बनता है,प्रकाश तथा अंधकार में समान रूप से रहता है। प्रकाशसंश्लेषण के इस द्वितीय चरण को अप्रकाशिक अभिक्रिया (dark reaction) कहते हैं। यह चरण अप्रकाशिक अभिक्रिया इसीलिए नहीं कहलाता,क्योंकि यह अंधकार में होता है या इसमें प्रकाश की अनुपस्थिति आवश्यक है,अपितु प्रकाश होने या न होने का इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

कुछ और प्रश्न जिन्हें आप तैयारी कर सकते हैं। 

Q. प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के लिए पौधे CO2 कहां से प्राप्त करते हैं

 जैव प्रक्रम : पोषण के वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर(objective question) 


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