बिहार बोर्ड परीक्षा 2022 (A) में पूछे गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
इतिहास (History)
1. जर्मनी के एकीकरण की बाधाएँ क्या थीं ?
उत्तर :- जर्मनी पूरी तरह से विखंडित राज्य था जिसमें लगभग 300 छोटे-बड़े राज्य थे।उनमें धार्मिक,राजनितिक तथा सामजिक विषमताएँ भी मौजूद थीं। वहाँ प्रशा शक्तिशाली राज्य था एवं अपना प्रभाव बनाए हुए था। उनमें जर्मन राष्ट्र की भावना का अभाव था,जिसके कारण एकीकरण का मुद्दा उनके सक्षम नहीं था।
2. खुनी रविवार क्या है ?
उत्तर - 1905 ईo के ऐतिहासिक रूस-जापान युद्ध में बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के कारण 1905 ईo में रूस में क्रांति हो गई। 9 फरवरी 1905 ईo को लोगों का समूह "रोटी दो" के नारे के साथ सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए सेंट पीटर्सबर्ग स्थित महल की ओर जा रहा था। परन्तु जार की सेना ने इन निहत्थे लोगों पर गोलियाँ बरसायीं जिसमें हजारों लोग मारे गए,उस दिन रविवार था इसलिए उस तिथि को खुनी रविवार (लाल रविवार) के नाम से जाना जाता है।
3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब और कहाँ हुई थी?
उत्तर :- 18 दिसम्बर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कोलकाता में हुई थी।
4. दांडी यात्रा का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :- दांडी यात्रा का उद्देश्य दांडी समुद्र तट पर पहुँचकर समुद्र तट पर पहुँचकर समुद्र के पानी से नमक बनाकर,नमक कानून का उललंघन कर सरकार को बताना था कि नमक पर कर बढ़ाना अनुचित फैसला है। साथ ही, यह सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन के शुरुआत का संकेत भी था।
5. श्रमिक वर्ग किन परिस्थितियों में नगरों में आए ?
उत्तर :- आधुनिक शहरों में एक ओर पूँजीपति वर्ग का अभ्युदय हुआ तो दूसरी ओर श्रमिक वर्ग का। सामंती व्यवस्था के अनुरूप विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के द्वारा सर्वहारा वर्ग का शोषण आरम्भ हुआ,जिसके परिणामस्वरूप शहरों में दो परस्पर विरोधी वर्ग उभरकर सामने आए। शहरों में फैक्ट्री प्रणाली की स्थापना के कारण कृषक वर्ग जो लगभग भूमिविहीन कृषक वर्ग में थे ,शहरों की बेहतर रोजगार के अवसर को देखते हुए भरी संख्या में शहरों की ओर उनका पलायन हुआ। इस प्रकार शहरों में श्रमिक वर्ग का दबाब काफी बढ़ गया।
6. ब्रेटन वुड्स सम्मलेन का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:- विश्व बैंक और अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना के साथ 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मलेन के दौरान हुई थी। उस समय इसका मकसद द्वितीय विश्वयुद्ध और विश्वव्यापी आर्थिक मंडी से जूझ रहे देशों में आई आर्थिक मंडी से निपटना था इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निर्माण और विकास के कार्यों में अधिक सहायता देना है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न / Long Answer Type Questions
7. मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर :- छापाखाना की संख्या वृद्धि के परिणामस्वरुप पुस्तक निर्माण में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। 15 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक यूरोपीय बाजारों में लगभग 2 करोड़ मुद्रित किताबें आईं जिसकी संख्या 16 वीं सदी तक 20 करोड़ हो गई। इस मुद्रण क्रांति ने आम लोगों की जिंदगी ही बदल दी। आम लोगों का जुड़ाव सूचना,ज्ञान,संस्था और सत्ता से नजदीकी स्तर पर हुआ। जिसके कारण लोक चेतना एवं दृष्टि में बदलाव संभव हुआ।
मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी तबकों तक पहुँच गई। किताबों की पहुँच आसान होने से पढ़ने की नै संस्कृति विकसित हुई। एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ। पढ़ने से उनके अंदर तार्किक क्षमता का विकास हुआ।
इससे तर्कवाद और मानवतावाद का द्वारा खुला। धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी पंचानवें स्थापनाएँ लिखीं। लूथर के लेख आम लोगों में काफी लोकप्रिय हुए। फलस्वरूप चर्च में विभाजन हुआ और प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई। लूथर ने कहा "मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम दें है,सबसे बड़ा तोहफा"। इस तरफ छपाई ने नए बौद्धिक माहौल का निर्माण किया एवं धर्म सुधार आंदोलन के नए विचारों का फैलाव तीव्र गति से आम लोगों तक फैला।
18 वीं सदी के मध्य तक मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप प्रगति और ज्ञानोदय का प्रकाश यूरोप में फैल चूका था। लोगों में निरंकुश सत्ता से लड़ने हेतु नैतिक साहस का संचार होने लगा था। फलस्वरूप मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए भी अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण किया। परम्परा पर आधारित सामाजिक व्यवस्था दुर्बल हो गयी। अब लोगों में आलोचनात्मक सवालिया और तार्किक दृष्टिकोण विकसित होने लगी। धर्म और आस्था को तर्क की कसौटी पर कसने से मानवतावादी दृष्टिकोण विकसित हुआ। इस तरह की नई सार्वजानिक दुनिया ने सामाजिक क्रांति को जन्म दिया।
8. सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों की विवेचना करें।
उत्तर :- ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाप गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ईo में छेड़ा गया सविनय अवज्ञा आंदोलन दूसरा ऐसा जान आंदोलन था जिसका सामाजिक आधार काफी व्यापक था। असहयोग आंदोलन की समाप्ति के पश्चात भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक शून्यता की स्थिति पैदा हो गई थी। परन्तु इसी बीच कुछ ऐसे घटनाक्रम की पुनरावृत्ति हुई जिसने मृतप्राय राष्ट्रवाद को नया जीवन प्रदान किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों को निम्नलिखित रूप दे सकते हैं :
(i) साइमन कमीशन की नियुक्ति -1919 ईo के ऐक्ट को पारित करते समय सरकार ने यह घोषणा की थी कि 10 वर्षों के पश्चात पुनः इन सुधारों की समीक्षा होगी। परन्तु समय से पूर्व ही नवम्बर 1927 ई0 में साइमन कमीशन की नियुक्ति हुई जिसके सारे सदस्य अंग्रेज थे। इस कमीशन का उद्देश्य संवैधानिक सुधारों के प्रश्न पर विचार करना था। कमीशन में एक भी सदस्य भारतीय नहीं था। भारत में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। प्रदर्शनकारियों ने साइमन वापस जाओ का नारा बुलंद किया। इस प्रकार साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन ने तात्कालिक रूप में एक व्यापक राजनीतिक संघर्ष को जन्म दिया।
(ii) नेहरू रिपोर्ट - साइमन कमीशन के वहिष्कार के समय तत्कालीन भारत सचिव ने भारतीयों को एक ऐसे संविधान के निर्माण की चुनौती दी जो सभी दलों एवं गुटों को मान्य हो। कांग्रेस ने फरवरी,1928 ईo को दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मलेन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। इस समिति ने ब्रिटिश सरकार से 'डोमेनियम स्टेट' की दर्जा देने की माँग की जिससे कांग्रेस का एक वर्ग असहमत था। यद्यपि नेहरू रिपोर्ट स्वीकृत नहीं हो सकी लेकिन इसने अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णयों को जन्म दिया। साम्प्रदायिकता की भावना जो अंदर थी अब उभरकर सामने आ गई। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा दोनों ने इसे फैलाने में सहयोग दिया। अतः गाँधीजी ने इससे निपटने के लिए सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
(iii) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव-1920-30 ईo की विश्व व्यापी मंदी का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा पारा। मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि हुई। भारत का निर्यात कम हो गया। अनेक कारखानों बंद हो गए। पुरे देश का वातावरण सरकार के खिलाफ था। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आंदोलन हेतु एक उपयुक्त अवसर दिखाई पड़ रहा था।
(iv) समाजवाद का बढ़ता प्रभाव -समाजवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण वामपंथी दबाब को संतुलित करने हेतु एक आंदोलन के नए कार्यक्रम की आवश्यकता थी।
(v) क्रांतिकारी आंदोलन का उभार - देश में क्रांतिकारी आंदोलन विस्फोटक हो चला था,ऐसे में देश के नवयुवकों के लिए एक नई दिशा व पहल की आवश्यकता थी।
(vi) पूर्ण स्वराज की माँग - दिसम्बर 1929 ईo के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की गई।26 जनवरी 1930 ईo को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की गई। इस प्रकार पूरे देश में उत्साह की एक नई जाग्रत हुई। गांधीजी का मनाना था कि हमें हिंसा द्वारा स्वंतत्रता नहीं मिलेगी। इसीलिए हम ब्रिटिश सरकार से यथासंभव स्वेच्छापूर्ण किसी भी प्रकार का सहयोग न करने की तैयारी करेंगे और सविनय अवज्ञा एवं करबंदी तक के साज सजाएँगे।
(vii) गाँधीजी का समझौतावादी रुख - आंदोलन आरम्भ करने से पूर्व गाँधी ने वायसराय इरविन के समक्ष अपनी 11-सूत्री माँगों को रखा और सरकार द्वारा इसे पूरा किए जाने की स्थिति में प्रस्तावित आंदोलन को स्थगित करने की बात कही। इरविन ने गाँधी से मिलने से भी इनकार कर दिया। इस बीच सरकार का दमनचक्र और भी तेज हो गया। अतः बाध्य होकर गाँधी ने अपना आंदोलन दांडी मार्च से आरम्भ करने का निश्चय किया।