हम जानते हैं कि हृदय एक केंद्रीय पंप अंक की तरह कार्य करता है। इसका काम रक्त पर दबाव बनाकर उसका परिसंचरण पूरे शरीर में कराना है। चूँकि हृदय को धमिनयों, धमनिकाओं,केशिकाओं फिर, शिरिकाएँ तथा शिराओं में रक्त संचार कराना होता है अतः यह रक्त पर दबाव डालता है। यह दबाव हृदय के वेश्मों के संकुचन तथा शिथिलन के कारण उत्पन्न होता है। शिराओं की अपेक्षा धमनियों के रक्त पर यह दबाव ज्यादा होता है।
महाधमनी एवं उसकी मुख्य शाखाओं में रक्त प्रवाह का दबाव रक्तचाप कहलाता है।
रक्त प्रवाह निलयों के संकुचन से उत्पन्न होता है। यह दबाव सिस्टोलिक प्रेशर कहलाता है। सिस्टोलिक प्रेशर 120m पारे के स्तंभ द्वारा उत्पन्न दाब के बराबर होता है। इसी तरह निलय के शिथिलन या प्रसारण से भी दबाव उत्पन्न होता है। इस दबाव को डायस्टोलिक प्रेशर कहते हैं। निलय के शिथिलन, अर्थात डायस्टोलिक प्रेशर के समय रक्त अलिंद से निलय में प्रवेश करता है।
डायस्टोलिक प्रेशर 80 mm पारे के स्तंभ द्वारा उत्पन्न दाब के बराबर होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति का सामान्य स्थिति में सिस्टोलिक प्रेशर /डायस्टोलिक प्रेशर = 120/80 होता है। यही रक्तचाप कहलाता है।
विभिन्न व्यक्तियों में रक्तचाप उम्र, लिंग ,अनुवांशिकता ,शारीरिक तक एवं मानसिक स्थिति तथा अन्य कई कारणों से अलग-अलग होता है।