ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बना ओजोन का एक स्तर वायुमंडल में 15 किलोमीटर से लेकर लगभग 50 किलोमीटर ऊंचाई वाले क्षेत्र के बीच पाया जाता है जो पृथ्वी पर रहने वाले जीव धारियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सूर्य प्रकाश में उपस्थित हानिकारक पराबैगनी किरणों का अवशोषण कर लेता है जो मनुष्य में त्वचा -कैंसर ,मोतियाबिंद तथा अनेक प्रकार के उत्परिवर्तन को जन्म देती है।
जैसे कि आप जानते हैं वायुमंडल में ऑक्सीजन गैस के रूप में रहता है जो सभी जीवो के लिए आवश्यक है। सूर्य के प्रकाश में पाया जाने वाला पराबैंगनी विकिरण ऑक्सीजन को विघटित कर स्वतंत्र ऑक्सीजन परमानु बनाता है,जो ऑक्सीजन अणुओं से संयुक्त होकर ओजोन बनाता है।
कुछ रसायन जैसे फ्लोरोकार्बन एवं क्लोरोफ्लोरोकार्बन ओजोन से अभिक्रिया कर आण्विक तथा परमाण्विक ऑक्सीजन में विखंडित कर ओजोन स्तर का अवक्षय कर रहे हैं। कुछ सुगंधियाँ, झागदार शेविंग क्रीम,कीटनाशी, गंधहारक आदि डिब्बों में आते हैं और फुहारा या झाग के रूप में निकलते हैं। इन्हें एरोसॉल कहते हैं। इनके उपयोग से वाष्प सील CFC वायुमंडल पहुँकर ओजोन स्तर को नष्ट करते है।
CFC का व्यापक उपयोग एयरकंडीशनों, रेफ्रिजरेटर ,शीतलकों जेटइंजनों, अग्निशामक उपकरण आद में होता है। वैज्ञानिकों के अध्ययन से यह पता चला कि 1980 के बाद ओजोन स्तर में तीव्रता से गिरावट आई है।अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन के स्तर में इतनी कमी आई है कि इसे ओजोन छिद्र की संज्ञा दी जाती है। वैज्ञानिकों का प्रयास है कि CFC का समुचित विकल्प खोजा जाए जिससे ओजोन स्तर की कमी को रोका जा सके। 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के दौरान यह समिति बनी कि CFC के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए। इससे ओजोन अवसर पर रुक रहने संभव है। विभिन्न देशों में इस दिशा में कार्य चल रहे हैं।