परागण

Er Chandra Bhushan
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 पराग कणों के पराग कोश से निकलकर उसी पुष्प या उस जाति के दूसरे पुष्पों के वर्तिकाग्र तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं। 

यह निम्नांकित दो प्रकार का होता है।

  1. स्व-परागण
  2. पर -परागण
1. स्व-परागण
जब एक ही पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हो या उसी पौधे के अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हो तो इसे स्वपरागण कहा जाता है।

2.पर -परागण
जब एक पुष्प के परागण दूसरे पौधों पर स्थित पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुंचते हो तो उसे पर परागण कहा जाता है।

स्वपरागण केवल उभयलिंगी पौधों में ही होता है जैसे सूर्यमुखी,  बालसम, पोर्चुलाका, आदि। अधिकांश पौधों में पर-परागण ही परागण की सामान्य विधि है। इसके लिए किसी बाहरी कारक या बाह्यकर्ता की आवश्यकता होती है जो किसी एक पौधे के पुष्प के पराग कोष से पराग कणों को किसी अन्य पुष्प के वर्ती करता तक पहुंचाने का कार्य करता है। यह बाहरी कारक कीट पक्षी,चमगादड़, मनुष्य ,वायु जल आदि कोई भी हो सकते हैं। पर-परागण के लिए पुष्पों में कुछ विशेष अवस्थाएँ होती है जिनसे उनमें पर-परागण ही संभव को पता है।
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