उत्तर आर्थिक लाभ के लिये मधुमक्खियों का पालन-पोषण तथा प्रबंधन मधुमक्खी पालन कहलाता है। मधुमक्खियों से हमें शहद या मधु तथा मधुमोम प्राप्त होते हैं। इन उत्पादों के अतिरिक्त परागण में मधुमक्खियों का बहुत बड़ा योगदान होता है। मधुमक्खी एक संघचारी कीट है, अर्थात् ये समूह में एक उपनिवेश या कॉलनी बनाकर रहते हैं। इनका निवास मधुमक्खी का छत्ता कहलाता है। मधुमक्खी के एक छत्ते में तीन प्रकार की जातियाँ होती हैं। एक छत्ते में सामान्यतः एक रानी मधुमक्खी, कुछ नर मधुमक्खी या ड्रोन तथा कई कार्यकर्ता या सेवक होते हैं। इन जातियों में श्रम-विभाजन पाया जाता है। अर्थात् एक जाति या वर्ग किसी विशेष प्रकार के कार्य का ही सम्पादन करता है। रानी मधुमक्खी का काम मात्र अण्डे देना है। ड्रोन का कार्य रानी मधुमक्खी को अण्डे देने के लिये निषेचित करना है। इन कायाँ के अतिरिक्त छत्ते की बाकी सभी कार्यों का संपादन कार्यकर्ता या सेवक करते हैं। जैसे छत्ते का निर्माण करना एवं मरम्मत करना, भोजन के लिये फूलों से परागकण एवं मकरंद एकत्रित कर हो में लाना, छत्ते की सफाई एवं सुरक्षा, बढ़ते लार्वा को भोजन कराना इत्यादि कार्यों का संपादन कार्यकर्ता ही करते हैं। कार्यकर्ता द्वारा एकत्र किये गये परागकण एवं मकरंद ही इनके भोजन हैं। कार्यकर्ता के आहारनाल में परागकण तथा मकरंद में कई प्रकार के जीव रासायनिक परिवर्तन के बाद शहद या मधु का निर्माण होता है। यह इसी मधु को कार्यकर्ता छत्ते में संचित रखते हैं। मधुमक्खी से प्राप्त होने वाले मधु या शहद हमारे लिये एक अत्यंत पौष्टिक भोज्य पदार्थ है। शहद में खनिज लौह तथा कैल्सियम प्रचुर मात्रा में होता है। इसका उपयोग आयुर्वेदिक औषधि बनाने में किया जाता है। प्राकृतिक रोगाणुरोधक भी होता है। मधुमक्खी के छत्ते का निर्माण कार्यकर्ताओं द्वारा स्रावित मोम से होता है। यह मोम मधुमोम कहलाता है। मधुमोम हमारे लिये भी कई प्रकार से उपयोगी होता है। इसका व्यवहार प्रसाधन सामग्री, मोमबत्ती, विभिन्न प्रकार के पॉलिश, दाढ़ी बनाने के उपयोग में आनेवाले क्रीम के उत्पादन में किया जाता है। सामान्यतः मधुमक्खियाँ अपने छत्ते पेड़ की डालियों के ऊपर या पुराने भवनों की छत एवं दीवारों के बीच के कोने जैसे सुरक्षित स्थानों पर बनाती हैं। परन्तु मधुमक्खी पालन के लिये कृत्रिम मधुमक्खी पेटिका का उपयोग किया जाता है। इन कृत्रिम पेटिकाओं को फुलवारी या बागानों में या अन्य खुले स्थानों में रखा जाता है। फुलवारी या बागान जहाँ से मधुमक्खियाँ परागकण तथा मकरंद एकत्र करती हैं चारागाह कहलाता है। मधु की गुणवत्ता चारागाह में उपलब्ध फूलों की किस्मों पर निर्भर करता है। मधु का स्वाद भी फूलों के किस्मों पर ही निर्भर करता है। मधुमक्खी पालन एक अत्यंत कुशलता एवं सावधानी से किये जानेवाला कार्य हैं। ऐसे कृत्रिम मधुमक्या पेटिकाओं से मधु निकालते समय एक विशेष प्रकार के वस्त्र तथा दस्तानों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार मधुमक्खी पालन आर्थिक लाभ को बढ़ावा देने वाला एक अच्छा व्यवसाय है, जो बहुत ही कुशलता एवं दक्षता से चलायी जाती है, अत: कहा जा सकता है कि मधुमक्खी पालन एक व्यवसायी के लिये एक अच्छा और लाभ कमाने वाला व्यवसाय है।