उत्तर : समुद्री मत्स्यकी कार्यक्रम के अन्तर्गत समुद्री मछलियों तथा कवचीय मछलियों का संवर्धन एवं उत्पादन किया जाता है। हमारे देश का लगभग 7500 किलोमीटर का समुद्रीतट समुद्री मछली संसाधन क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त सभी प्रकार के समुद्री वासस्थानों जैसे सतही जल, समुद्री गहराई आदि विस्तृत क्षेत्रों से मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। मृदुजल मृदुजल मिश्रित समुद्री जल या एस्चुरी तथा लैगून भी महत्वपूर्ण मछली संसाधन क्षेत्र हैं। जैसे नदी मुख या एस्चुरी तथा लैगून भी महत्वपूर्ण मछलियां संसाधन क्षेत्र है। आधुनिक मत्स्यकी में समुद्री मछलियों के समूहों के रहने के स्थानों का निर्धारण सैटेलाइट तथा प्रतिध्वनि गंभीर मापी जैसे इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों द्वारा किया जाता है। फिर उन्हें विशेष प्रकार की नौकाओं तथा जालों की मदद से पकड़ा जाता है। सार्डिन, एनकोभीज, सीयर फिश, टूना, बील फिश, मैक्रेल, बौंबे डक, सिल्वर बेलिज हिलसा, पॉमफ्रेट, मुलेट, भेटकी तथा पर्लस्पॉट इत्यादि आर्थिक महत्व की समुद्री मछलियाँ हैं। इनका उपयोग भोजन में होता है। आलंकारिक या सजावटी समुद्री मछलियों की प्रमुख प्रजातियाँ क्लाउन फिश तथा डैमसेल फिश हैं। प्रमुख समुद्री कवचीय मछलियाँ जिनका उपयोग भोज्य पदार्थों के रूप में होता है, वे हैं-झींगा, महाचिंगट या लॉब्सटर, स्रींप, केकड़े इत्यादि। मुलेट, भेटकी, पर्लस्पॉट जैसी पखयुक्त मछलियों तथा झींगा जैसी कवचीय मछलियों का समुद्री जल में संवर्धन भी किया जाता है। संवर्धित मोतियों के उत्पादन के लिये ऑएस्टर का भी संवर्धन किया जाता है। समुद्री मछलियों का संवर्धन समुद्री संवर्धन कहलाता है। समुद्री मछलियों तथा मृदुजलीय मछलियों के संवर्धन की मूल तकनीक करीब-करीब एक ही प्रकार की होती हैं।