उत्तर-सबसे पहले मनुष्यों के लिये टीके का विकास के चेचक से हुआ। आगे चलकर इसी तरह कई रोगों से सुरक्षा के लिये विभिन्न तरीकों से टीके विकसित किये गये। टीके को शरीर में प्रवेश कराने की विधि टीकाकरण (Vaccination) कहलाता है। Vaccination की उत्पत्ति लैटिन शब्द Vacca तथा Vaccinia (Vacca = cow, Vaccinia = cowpox) से हुआ है। टीकाकरण वह विधि है जिसके द्वारा सूक्ष्म रोगाणुओं को किसी विशिष्ट रसायन के माध्यम में विकसित कर अत्यंत कम मात्रा में किसी मनुष्य के शरीर में प्रवेश कराया जाता है। रोगाणुमिश्रित इस प्रकार का विशिष्ट रसायन टीका (Vaccine) कहलाता है। टीका सूर्य लगाकर या दवा के रूप में पिलाकर शरीर में प्रवेश कराया जाता है।
किसी विशिष्ट रोग का टीका जब शरीर के अन्दर पहुँचता है तब शरीर का प्रतिरक्षक तंत्र उस रोग के विरुद्ध एंटीबॉडीज बना लेता है। इस प्रकार उत्पन्न एंटीबॉडी शरीर में अस्थायी या स्थायी रूप से मौजूद रहता है। जब कभी वही रोगाणु वास्तव में शरीर के अन्दर अपने आप पहुँचता है, तब पहले से शरीर में मौजूद एंटीबॉडी उक्त विशेष रोगाणुओं को नष्ट कर देता है। इस प्रकार शरीर उस विशेष रोग से मुक्त रहता है। कॉलेरा, टाइफाइड, पोलियो, डिप्थेरिया, कुकुरखाँसी, टिटनस, चेचक (Small pox and measles), हेपेटाइटिस तथा रेबीज कुछ ऐसे प्रमुख रोग हैं जिनसे प्रतिरक्षा के लिये टीका विकसित हो चुके हैं। ऐसे रोगों के टीके का व्यवहार प्रभावी रूप से किया जा रहा है। टीकों का संरक्षण (Storage) सामान्यतः अत्यंत कम तापक्रम पर ये आसानी से नष्ट हो जाते हैं। संरक्षित टीकों का क्रियाशीलता भी एक निश्चित अवधि के भीतर उनका उपयोग नहीं होने पर वे स्वत: नष्ट हो जाते हैं। कई संक्रामक रोग पालतू जानवरों के माध्यम से भी मनुष्यों में फैलते हैं। अतः पालतू जानवरों का भी समय-समय पर टीकाकरण करवाना अनिवार्य है। कई संक्रामक रोगों के नियंत्रण के लिये टीकाकरण एक राष्ट्रीय अभियान के रूप में चलाया जाता है। हमारे देश में भी 'मलेरिया उन्मूलन' तथा 'पल्स पोलियो' अभियान के रूप में चलाये गये हैं जिसमें बहुत सफलता मिली है।