उत्तर- एपिथीलियम्मी ऊतक जन्तु ऊतक में पाया जाता है। ये अंगों की बाहरी पतली तरल तथा आन्तरिक अंगों की भीतरी स्तर का निर्माण करती हैं। ऐसे ऊतक में अन्तरकोशिकीय स्थान अर्थात् कोशिकाओं के बीच के स्थान नहीं होते हैं। इनकी कोशिकायें एक-दूसरे से करीब-करीब सटी होती हैं। ऐसे ऊतक अंगों की रक्षा करते हैं। ये विसरण, स्रवण तथा अवशोषण में सहायता करते हैं। कोशिकाओं का भित्ति के रूप में पाये जाने के कारण इसे बहुत अच्छा रक्षक ऊतक माना जाता है। हमारी त्वचा, मुँह का बाह्य आवरण, फेफड़े इत्यादि सभी एपिथीलियम ऊतक के बने होते हैं।
एपिथीलियमी ऊतक की विशेषताएँ :—
(ⅰ) ये एक विशेष उप-प्रकार में समान कोशिकाओं के बने होते हैं।
(ii) कोशिकाओं के बीच अन्तरकोशिकीय अवकाश नहीं होते हैं।
एपिथीलियमी ऊतक के कार्य-
(a) त्वचा की बाह्य परत का निर्माण करना।
(b) कोमल अंगों की बाहरी परत बनाकर उनकी रक्षा करना।
(c) पोषक पदार्थों के अवशोषण में सहायता करना।
(d) व्यर्थ पदार्थों के निष्कासन में सहायता करना।