भारतीय समाचार पत्रों की स्वतंत्रता 1835 (The Liberation of Indian Press) :
विलियम वेंटिक समाचार पत्रों के प्रति उदार था लेकिन 1823 के नियम को रद्द कर चार्ल्स मेटकाफ भारतीय समाचार पत्रों के 'मुक्ति दाता' के रूप में विभूषित हुआ। मैकाले का विचार था कि आपातकाल में सरकार के पास अनन्त शक्ति है तो शांतिकाल में ऐसे नियमों की कोई आवश्यकता नहीं है। नए अधिनियम के तहत प्रकाशक प्रकाशन स्थान की सूचना देकर सुगमता से कार्य कर सकता था। 1856 तक यह कानून चलता रहा फलतः देश में समाचार पत्रों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।