Darvin ke prakritik chayan ke sidhant ka varnan karen
डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत का वर्णन करें।
उत्तर-डार्विनवाद (Darwinism)- चार्ल्स डार्विन और वैलेस ने बाद में 'प्राकृतिक चयनवाद का सिद्धांत (th डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत का वर्णन करें। eory of natural selection) दिया, जिसे डार्विन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'Origin of Species by Natural selection' में प्रस्तुत किया। इसे स्थापित करने में स्पेन्सन (Spencer, 1858) नामक वैज्ञानिक ने भी योगदान दिया। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक जीवधारी में संतानोत्पत्ति की अद्भुत क्षमता (over productivity) पायी जाती है, इसलिए एक अकेली प्रजाति पूरी पृथ्वी पर फैल जा सकती है। परिणामतः आवास और भोजन की उपलब्धता के लिए इनमें अंतःप्रजातीय (Intraspecific) और अंतर्जातीय (Inter specific) और बीच-बीच में प्राकृतिक विपदाओं (natural clamities) से भी संघर्ष करना पड़ता है, जिसे अस्तित्व के लिए संघर्ष (struggle for existance) कहा जाता है। स्पेंसर (1858) के अनुसार इस त्रिआयामी संघर्ष में सिर्फ वही विजेता हो सकता है जिसके लक्षण अनुकूलतम (survival of fittest) हों। इस आधार पर डार्विन ने निष्कर्ष निकाला कि, "प्रकृति बार-बार परिवर्त्तनों के द्वारा किसी भी क्षेत्र में पाये जाने वाले जीवधारियों के विरुद्ध एक बल उत्पन्न करती है, जिसे प्राकृतिक चयन कहा जाता है। इसके कारण प्रतिकूल लक्षणों वाले जीवधारी नष्ट हो जाते हैं और अनुकूल लक्षणों वाले जीवधारियों का परोक्ष चयन हो जाता है।" यह सिद्धांत वास्तव में चावल चुनने के बदले कंकड़ चुनने की क्रिया है। लेकिन, प्रतिकूल लक्षण वाले जीवधारी तुरन्त मर जाते हैं, ऐसी बात नहीं है, वास्तव में धीरे-धीरे उनका प्रजनन-दर (natality) घटता है और मृत्यु-दर (mortality) बढ़ता है जिससे कि सैकड़ों वर्षों में ये लुप्त होते हैं। डार्विन को आनुवंशिकता के कारणों का पता नहीं था, इसलिए वे वास्तव में यह नहीं बता सकते थे कि लक्षण धीरे-धीरे क्यों बदलते हैं। लेकिन उन्होंने विभिन्नताओं (variations), की पहचान की और नयी प्रजातियों की उत्पत्ति पर ठीक-ठीक प्रकाश डाला।