1929 ई० के आर्थिक संकट के कारण और परिणाम को स्पष्ट करें।
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1929 ई० के आर्थिक संकट के कारण और परिणाम को स्पष्ट करें।

1929 की महामंदी का वर्णन कीजिए

 1929 ई० के आधिक संकट का बुनियादी कारण स्वयं इस अर्थव्यवस्था के स्वरूप में निहित था। प्रथम विश्वयुद्ध के चार वर्षों में यूरोप को छोड़कर बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार होता चला गया। उसके लाभ बढ़ते चले गए दूसरी ओर अधिकांश लोग गरीबी और अभाव में पिसते रहे। नवीन तकनीकी प्रगति तथा बढ़ते हुए मुनाफे के कारण उत्पादन में जो भारी वृद्धि हुई उससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि जो कुछ उत्पादित किया जाता था उसे खरीद सकने वाले लोग बहुत कम थे।

कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन की समस्या बनी हुई थी। इससे कृषि उत्पादों की कीमतें कम हो गईं। गिरती कीमतों से किसानों की आय घटी, अतः इस स्थिति से निकलने के लिए उन्होंने उत्पादन को और बढ़ाया जिससे कीमतें और नीचे गिर गईं। कृषि उत्पाद पड़ी पड़ी सड़ने लगी। अर्थशास्त्री काउलिफ ने अपनी पुस्तक "दि कॉमर्स ऑफ नेशन" में लिखा है कि विश्व के सभी भागों में कृषि उत्पादन एवं खाद्यान्न के मूल्य की विकृति 1929-32 ई० के आर्थिक संकट के मूल कारण थे ।

1920 ई० के दशक के मध्य में बहुत सारे देशों ने अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी युद्ध से तबाह हो चुके अर्थव्यवस्था को नये सिरे से विकसित करने का प्रयास किया। जब स्थिति अच्छी थी तब तक अमेरिकी पूँजीपतियों ने यूरोप को कर्ज दिए लेकिन अमेरिका की घरेलू स्थिति में संकट के कुछ संकेत मिलने के साथ ही वे लोग कर्ज माँगने लगे। इससे यूरोप के सभी देशों के समक्ष गहरा संकट आ खड़ा हुआ। इस परिस्थिति में यूरोप के कई बैंक डूब गए। महत्त्वपूर्ण देशों की मुद्रा मूल्य गिर गई।

अमेरिका में संकट के लक्षण देखते ही उसने संरक्षणात्मक उपाए करने आरंभ किए । आयातित वस्तुओं पर उन्होंने दो गुणा सीमा शुल्क लगा दिया, साथ ही आयात की मात्रा भी सीमित किया। इस संकुचित आर्थिक राष्ट्रवाद ने विश्व व्यापार के बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की कमर ही तोड़ दी। आर्थिक मंदी में अमेरिका के बाजारों में शुरू हुआ सट्टेबाजी की प्रवृति भी निर्णायक रही ।

इस मंदी का बुरा प्रभाव अमेरिका को ही झेलना पड़ा। मंदी के कारण बैंकों ने लोगों को कर्ज देना बंद कर दिया और दिए हुए कर्ज की वसूली तेज कर दी। किसान अपनी उपज को बेच नहीं पाने के कारण तबाह हो गए। कर्ज की कमी से कारोबार ठप्प पड़ गया। बैंकों ने लोगों के सामानों, मकान, कार, जरूरी चीजों को कुर्क कर लिया। लोग सड़क पर आ गए। कारोबार ठप्प पड़ने से बेरोजगारी बढ़ी । कर्ज की वसूली नहीं होने से बैंक बर्बाद हो गए एवं कई कंपनियाँ बंद हो गईं। 1933 ई० तक 4000 से ज्यादा बैंक बंद हो चुके थे और लगभग 110000 कंपनियाँ चौपट हो गई थीं।

अन्य देशों पर होने वाले आर्थिक प्रभावों में जर्मनी और ब्रिटेन इस आर्थिक मंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। महामंदी ने भारतीय व्यापार को भी प्रभावित किया । 1928-1934 ई० के बीच देश के आयात-निर्यात घटकर लगभग आधी रह गई। कृषि उत्पाद की कीमत काफी गिर गई, जिससे भारतीय किसान काफी प्रभावित हुए। सरकार की तरफ से किसानों को कोई - रियायत नहीं दी गई। इस मंदी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को आरंभ करने - में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

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