उत्तर-औद्योगीकरण के निम्नलिखित कारण हैं:
(1) आवश्यकता आविष्कार की जननी है।
(ii) नए-नए मशीनों का आविष्कार
(iii) कोयले एवं लोहे की प्रचुरता
(iv) फैक्ट्री प्रणाली की शुरूआत
(v) सस्ते श्रम की उपलब्धता
(vi) यातायात की सुविधा
(vii) विशाल औपनिवेशिक स्थिति ।
ब्रिटेन में स्वतंत्र व्यापार और अहस्तक्षेप की नीति ने ब्रिटिश व्यापार को बहुत अधिक विकसित किया। उत्पादित वस्तुओं की माँग बढ़ने लगी। तात्कालिक ढाँचे के अन्तर्गत व्यापारियों के लिए उत्पादन में अधिक वृद्धि करना असंभव था। ऐसी स्थिति में परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, जिससे उत्पादन की मात्रा को बढ़ाया जा सके। यही वह सबसे प्रमुख कारण था जिनकी वजह से ब्रिटेन में औद्योगीकरण के आरंभिक वर्षों में आविष्कारों की जो श्रृंखला बनी वह सूती वस्त्र उद्योग के क्षेत्र से अधिक संबंधित थी ।
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ब्रिटेन में नए-नए यंत्रों एवं मशीनों के आविष्कार ने उद्योग जगत में ऐसी क्रांति का सूत्रपात किया जिससे औद्योगीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
चूँकि वस्त्र उद्योग की प्रगति कोयले एवं लोहे के उद्योग पर बहुत अधिक निर्भर करती थी इसलिए अंग्रेजों ने इन उद्योगों पर बहुत अधिक ध्यान दिया
मशीनों के नए-नए यंत्रों के आविष्कार ने फैक्ट्री प्रणाली को विकसित किया। फलस्वरूप उद्योग तथा व्यापार के नए-नए केन्द्रों का जन्म हुआ। लिवरपुल में स्थित लंकाशायर सूती वस्त्र उद्योग का केन्द्र बनाया गया।
औद्योगीकरण में ब्रिटेन में सस्ते श्रम की आवश्यकता की भूमिका भी अग्रणी रही है। अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में बाड़ाबंदी प्रथा की शुरूआत हुई जिसमें जमींदारों ने छोटे-छोटे खेतों को खरीदकर बड़े-बड़े फार्म स्थापित किए। अपनी जमीन बेच देने वाले छोटे-छोटे किसान भूमिहीन मजदूर बन गए। ये आजीविका उपार्जन के लिए काम-धंधों की खोज में निकटवर्ती शहर चले गए। इस तरह मशीनों द्वारा फैक्ट्री में काम करने के लिए असंख्य मजदूर कम मजदूरी पर भी तैयार हो जाते थे। सस्ते श्रम ने उत्पादन के क्षेत्र में सहायता पहुँचायी ।
फैक्ट्री में उत्पादित वस्तुओं को एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाने तथा कच्चा माल को फैक्ट्री तक लाने के लिए ब्रिटेन में यातायात की अच्छी सुविधा उपलब्ध थी, जिसके कारण औद्योगीकरण को बढ़ावा मिला।
औद्योगीकरण की दिशा में ब्रिटेन द्वारा स्थापित विशाल उपनिवेशों ने भी योगदान दिया। इन उपनिवेशों से कच्चा माल सस्ते दामों में प्राप्त करना तथा उत्पादित वस्तुओं को वहाँ के बाजार में मंहगे दामों पर बेचना ब्रिटेन के लिए