चन्द्रमुखीक चरित्र-चित्रण करू।
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चन्द्रमुखीक चरित्र-चित्रण करू।

 उत्तर-चन्द्रमुखी कथाक लेखक छथि लिली रे । हिनक जन्म पूर्णिया जिलाक रामनगर गाम मे 26 जनवरी 1933 ई० में भेल छलनि । ई कथा साहित्य मे चर्चित छथि ।

प्रस्तुत कथामे एकटा विधवाक जीवन पर मार्मिक ढंग सँ कथा कहल गेल अछि । चन्द्रमुखी दाई के सात पुत्रक सेहन्ता छलनि, मुदा प्रथमे संतानक जन्म सँ तीन महिना पहिने पतिक मृत्यु भऽ गेलनि ओ विधवा भऽ गेलीह । हुनक गर्भ मे एकटा फूल छलनि। ओहि फूल के पोसबाक लेल ओ बदामक दालि नहिं खाथि ।चन्द्रमुखी दाई के एकटा पुत्र भेलनि जकर नाम ओ फूल राखि लेलनि । क ओकरा पोसलाक बाद अपन भाग्य हुनके पर निर्भर कयलनि । तैं चन्द्रमुखी वि अपन फूल के माछ खोआबथि जे हुनक बुद्धि बढ़तनि । दालिक झोड़ पिआवथि जाहि सँ शरीर मजबूत हेतनि। अपन एकटा गामक देओर सँ करार करौलनि जे आहाँ हमारा बच्चा के दू अक्षर पढ़ा देब।

जतय जेहन गाम में कार्य भेटैन्हि से कार्य करैत आ अपन बेटा के माल भातक जोगार करथि आ पढ़ेबाक प्रयास करथि। ओ अपन पुत्र के कहैत छथि जे माछ खाईत छी कि नहि कनय ई घी लऽ जाठ, बिनु खयने नहि रहब ।

चन्द्रमुखी अपन पुत्रक लेल सभ दिन, आई एकादशी, काल्हि चतुर्दशी, परसू निराहार आ पारण मे मात्र तुलसी पात खाथि आ अपन अनेरे फाजिल खर्च नहि करथि ।

पढ़ि लिखि कऽ बेटा ओकालत करय लगलाह । मायके 5 टा वा 10 टा रुपया देबाक प्रत्येक महिना निश्चित कयल । चन्द्रमुखी दाई अपन खर्च नहि बढौलनि आ पाई बचा कऽ दू कट्ठा जमीन किनलनि ओई में आमक बाड़ी लगौलनि ।

बेटाक विवाह करवय चाहैत छलीह। ओकरा लेल एकटा पक्का मकान बनबए चाहैत छलीह मुदा अपने फूसक घर मे रहब पसिन्न करए छलीह ।

एहि तरहें चन्द्रमुखी दाई अपन नेनाक प्रति स्नेह राखथि । जहिया फूल गाम आवथि तहिया खूब मोन सँ भानस करथि आ नहि रहला पर किछु खा लैधि ।

भगवानक इच्छा नहि रहैन जे चन्द्रमुखीक ममता व स्नेह फूल के भेटनि । एक दिन फूल के पेट में दर्द उठलनि ओ डॉक्टर सँ देखौलनि सभ ठीक छलनि, मुदा पेशाब मे रक्त आबि गेलनि। डॉक्टर कहलनि जे हिनका कैंसर छनि । चन्द्रमुखी एहि डॉक्टर से ओहि डॉक्टर लग दौड़य लगलीह। आमक बाड़ी सूद भरना पर दऽ कऽ पटना गेलीह। मुदा डॉक्टर जाँच कयलाक बाद कहलनि जे ई तीन मास सँ अधिक नहि खेपताह एकमात्र भगवानक भरोसा । एहि सब बातक बाद चन्द्रमुखी अपना पुत्र फूल के गाम लऽ अनलीह । आ किछु दिनक बाद फूल चन्द्रमुखी के छोड़ि एहि दुनिया से विदा भऽ गेलाह । चन्द्रमुखी सुन्न भऽ गेली ।

 स्वतंत्रता आन्दोलनमे गाँधीजी कोन तरहें सहयोग कयलनि, उल्लेख करू।

उत्तर - स्वतंत्रता आन्दोलनमे गाँधीजी आगमन एकटा वरदान सिद्ध भेल । एकरामे एकटा नव भोड़ अएलैक। ओ चम्पारण आन्दोलनसँ भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनमे व्यापक स्तरपर भाग लेब शुरु कयलनि। चम्पारणक किसान पर अंगरेजक अत्याचार पराकाष्ठा पर छल। राजकुमार शुक्ल गांधीजीके चम्पारण अएबा लेल बाध्य कए देलनि। गांधीजी 'तीन कठिया' पद्धतिक विरोधमे काज करब शुरू कए कऽ देलनि आ अन्ततः चम्पारणसँ अंगरेज बगान मालिकके भगयबामे सफल भेलाह। तकरा बाद गुजरातक अहमदाबाद तथा खेड़ामे आन्दोलन कयलनि । हुनक कार्य पद्धति प्रभावी सिद्ध भेल । ते 1920 मे चलाओल गेल असहयोग आन्दोलनक रूप ग्रहण कए लेलक । पुनः 1942 मे 'भारत छोड़ो' आन्दोलन चलओलनि आ फेर करो या मरोक नारा देलनि । एहि प्रकारे गाँधीजी वि सर्वमान्य भए गेल छलनि। आ देशके 1947 में स्वतंत्र करौलनि।

(ग) 'समय-साल' कविताक भावार्थ लिखू। उत्तर-समय-साल कवितामे कवि चन्दा झा बाढ़िक विभिषिकासँ उत्पन्न मिथिलाक लोक परिस्थिति के वर्णन कयलनि अछि ।

 एहि ठाम मिथिलाक बाढ़ि रोकबाक लेल होइत लोक सभहक प्रयास, बाढ़िसँ तबाही ओकर जन-जीवन पर एकर प्रभावक चित्रण करैत कवि कहैत छथि जे-

मजदूर सभ बाढ़िक तवाहि सँ बचवा लेल सभ मिलि राति दिन कार्य कऽ रहल छथि सभ कोदारि पकड़ि कऽ आरि मजबूत कऽ रहल छथि । तथापिकमला उपजल धान ओ जजात के डुबा रहल छथि । कवि दाही-रौदीक विभीषिकासँ त्रस्त भऽ सुखमय जीवनक कामना करैत छथि-

बड़ रौदी छल बरिसल पानि ।

मघ असरेस कयले नहि हानि ।

एहि तरहे किसान अपन खेती कष्ट सँ करैत छथि मुदा जखन कमला माय के त्रासदी चलैत अछि तऽ ककरो बस नहि चलैत अछि ओकरा रोकव ।

कवि चन्दा झा कहैत छथि जे हे कमला मइया अपन जलके आब समेटि लिअऽ । कारण आब अन्याय भऽ रहल अछि। खेतिहर लोकनि बड़ आशा लगा कए बहुत-बहुत खर्चा कयने छल। ओ टाका ओ कर्जे लेने छल । आब यदि खेत नहि उपजत सभ दहा जायत तऽ ओ सभ कोना जिवैत रहत । ई सोचि मन विकल भए रहल अछि ।

एतेक दिन तऽ रौदिए छल मघा आ असरेस नक्षत्र आ जगौलक आ लोक कर्जा लय खेती कएलकं सभ प्रमुदित छल जे एहिबेर समय नीक छैक जाहिसँ धान नीक जेना उपजतै। मुदा अपन साध्य कहाँ छैक बादमे ततेक पानि भेलैक जे सभ किछु नष्ट भए गेलैक ।

 सुभदझाक जीवन यात्राक वर्णन करू।

उत्तर-डॉ० सुभद्रझाक अध्ययनारम्भ गामेक गुरु पं० बलदेव झाक देख-देख मे भेलनि । रहिका सँ मिडिल पास, वाटसन स्कूल, मधुबनी सँ मैट्रिक पास तथा जी०वी०बी० कालेज, मुजफ्फरपुर सँ 1930 ई० में आइ० ए० परीक्षोत्तीर्ण भेलाह। स्कोटिश चर्च कालेज सँ बी०ए० तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय सँ एम०ए० हिन्दी व संस्कृत मे कयलनि ।

कलकत्ता 1935 मे छोड़ि पटना डॉ० ए० बनर्जी शास्त्रीक निर्देशन मे चारि वर्षक लेल आवि गेलाह। 1936-40 चारि वर्ष मे मैथिली विषयक शोध करबाक हेतु हिनका रिसर्च स्कॉलरशिप भेटलनि । 1944 ई० में डॉ० सुभद्र झा पटना विश्वविद्यालय द्वारा डी० फिट उपाधि सँ सम्मानित कयल गेलाह । 1946 मे भाषा विज्ञानक अध्ययन करबाक हेतु पटना विश्वविद्यालय सँ दू वर्षक लेल फ्रान्स में रहि पढ़बाक व्यवस्था भेलनि आ पेरिस मे ओ भाषा विज्ञान ओ ध्वनि विज्ञानक गहन अध्ययन कयलनि । पेरिस विश्व विद्यालय से ओ "डॉक्टर-एस-लएतर्स" उपाधि प्राप्त कयलनि । एकर अतिरिक्त ओ साहित्याचार्य आ बी०एलक उपाधि प्राप्त कयने छलाह ।

डॉ० सुभद्र झा अनेकानेक स्कूल, कॉलेज वा विश्वविद्यालय में अध्ययन अध्यापन कयलनि तथा अनेक तरहक उपाधि से सम्मानित भेलाह ।

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