उत्तर-भूमि, जल एवं वायु मानव को प्रकृति का अमूल्य उपहार है। इन संसाधनों से मानवीय जीवन की दशा एवं दिशा निर्धारित होती है। अतएव इन संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है।
इन संसाधनों में जल ऐसा संसाधन है, जिसकी सीमित आपूर्ति, तेजी से फैलते प्रदूषण एवं समय की मांग को देखते हुए इसके उचित प्रबंधन व संरक्षण की आवश्यकता है। जल की यही संरक्षा व कुशल प्रबंधन-जल संरक्षण कहा जाता है।
जल संरक्षण हेतु सरकारें सतत् प्रयत्नशील रही हैं। भारत सरकार ने 1987 ई० में राष्ट्रीय जलनीति बनायी थी, जिसे अद्यतन कर 'राष्ट्रीय जल नीति', 2002 को अमलीजामा पहनाया गया ।
कुल मिलाकर जल संरक्षण के अधोलिखित उपाय हो सकते हैं:
(i) भूमिगत जल की पुनर्पूर्ति-पूर्व राष्ट्रपति डॉ० कलाम ने खेतों, गाँवों, शहरों, उद्योगों को पर्याप्त जल देने के उद्देश्य से भूमिगत जल की पुनर्पूर्ति पर बल दिया था। इसके लिए वृक्षारोपण, जैविक व कम्पोस्ट का प्रयोग, वेटलैंड्स का संरक्षण, वर्षा जल के संचयन एवं मल-जल शोधन, पुनः चक्रण जैसे कार्यकलाप उपयोगी हो सकते हैं।
(ii) जल संभरण प्रबंधन-जल प्रवाह या जल जमाव का उपयोग कर उद्यान, कृषि वानिकी, जल-कृषि, कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे पेय जल की आपूर्ति भी की जा सकती है।
(iii) तकनीकि विकास-तकनीकि के माध्यम से जल को कम-से-कम उपयोग द्वारा अधिकाधिक लाभ लेकर भी जल संरक्षण किया जा सकता है। ड्रिप सिंचाई, लिफ्ट सिंचाई, सूक्ष्म फुहारों द्वारा सिंचाई, सीढ़ीनुमा कृषि आदि इसके अंतर्गत आते हैं।
इसके अतिरिक्त वर्षा जल का संग्रहण व पुनः चक्रण, शहरीकरण,भवन-निर्माण आदि में जल प्रबंधन का ध्यान रखकर भी जल का संरक्षण किया जा सकता है।