(i) मिथिलाक सीमाक पश्चिम में परिवर्तनक कारणक उल्लेख करू ।
उत्तर-मिथिलाक संस्कृति वेद पर आधारित अछि। मिथिलहि में विदेह एवं लिच्छवीक दूइ राज्य छल। पूर्व मे विदेह ओ पश्चिम में लिच्छवीक । लिच्छवीक राजधानी वैशाली छल जे आई वैशाली जिलाक नामसँ जानल जाइत अछि । वैशाली मे जैनक अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी छलाह। भगवान बुद्धो एहिठाम प्रचार कार्य कयलनि। मिथिलाक पश्चिम सीमा गण्डकक तँ कथे कोन सम्पूर्ण चम्पारण जिला आई मिथिलाक संस्कृति से बाहर भऽ गेल अछि। ओतए मिथिला देशीय पञ्चाङ्ग नहि बनारसी पञ्चाङ्ग चलैत अछि। कारण एहि क्षेत्रमे (बसाढ़) बौद्ध धार्मिक प्रचार केन्द्र छल ।
(ii) पंडित जवाहरलाल नेहरुक भाषा प्रेमक वर्णन करू ।
उत्तर-पंडित जवाहरलाल नेहरुक भाषा प्रेम तऽ एहि बात सँ बुझना जाइत अछि जे "भाषा और साहित्य के बारे मे विवाद की क्या बात है? किसी को मैथिली या राजस्थानी से विवाद क्यों हो सकती है ?"
एहि मे हुनक भावना स्पष्ट भऽ रहल अछि जे भाषाक प्रति कतेक स्नेह रहैनि । भाषा साहित्य कोनो देशक एकताक प्रतीक होइत अछि। भाषासँ अर्थ अछि अपन देशक भाषा। सभ राज्यक भाषा अलग अछि, सभहके स्थान भेटवाक चाही एहि दिशामे पंडितजीक प्रयास सँ बहुत किछु सम्भव भेल । पं० जवाहरलाल नेहरू मात्र 20 मिनटक समय निर्धारण कयने छलाह जे प्रदर्शनी के उद्घाटन कए घुरि जायब मुदा जहन ओ प्रदर्शनीमे गेलाह तऽ डेढ़ घंटा धरि घुमैत रहलाह। पुस्तक सभ उलटवैत-पुलटबैत रहलाह आ लोकसँ
बातचीत करैत रहलाह जे हुनक भाषा प्रेमक द्योतक अछि ।
(iii) 'जय जवान जय किसान' कविताक भाव स्पष्ट करू ।
उत्तर-कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर लिखित 'जय जवान जय किसान' शीर्षक गीत मे भारतीय सैनिक वा किसान के चर्चा करैत छथि। ओ सैनिक के अपन जय जयकार करैत तऽ छथिन मुदा किसान के सेहो जय जयकार करैत छथि।
कविक लिखल पोथी 'स्वतंत्रता अमर हो हमर' नामक पोथी से ई कविता लेल गेल अछि । एहि पोथी मे राष्ट्रप्रेमक रचना संगृहीत अछि। 'जय जवान : जय किसान' एकरे कविता अछि ।
कवि रवीन्द्र ई गीत गावि सभ सैनिक के लाड़ाई में जयवाक लेललि खलनि ।
'लड़त सिपाही जा सीमा पर
हम अन्न उपजेबै
आमद से कम खर्चा करवै
देशी अन्न बचेबै
असराने रखबै आन केर'
अर्थात किसान के कवि अन्न उपजावक लेल कहैत छथि आ सैनिक के अन्न पहुँचाय मद्दि करब सभके कहैत छथि। कवि कहैत छथि हम कमेवै आ हमर जवान खेतै आ देश के सुरक्षा करतैक। कारण कोनो घैला बुन्दे-बुन्दे भरैत छैक एक-एक पैसा सँ बटुआ भरैत छैक जाहि से हम सभ नाचव आ हमर हिन्दुस्ताक शोभा बढ़त । हमर भारत सुरक्षित आ आत्म निर्भर रहत तऽ एकरा पर कोनो आक्रमण निष्फल भऽ जायत । तै सैनिक के आ किसान के अपन-अपन काज मे मन से लागब कवि कहैत छथि ।
(iv) शिवगीत शीर्षक कविताक सारांश लिखू ।
उत्तर-महाकवि विद्यापति शिवगीत शीर्षक कविताक कवि छथि । ई
विद्यापतिक महेशवाणी थिक। एहि मे पार्वती शिव सँ वार्तालाप करैत छथि । पार्वती-शिव सँ कहैत छथिन जे हम अहाँके बेर-बेर कहैत छी जे मोन लगा कऽ खेती करू । काज छोड़ि कय अहाँ भीख मँगैत फिरैत छी-
भिखिए पए मङिन्गअ
गुन गउरब दुर जाए
एहिसँ अहाँके गुण-गौरब पर प्रभाव पड़ैत अछि। सभ लोक निर्धन कहि कऽ अहाँक उपहास करैत अछि, किओ अहाँके नीक दृष्टि नहि देखैत अछि । एहिसँ स्वाभिमान नष्ट होइत छैक। इएहे कारण अछि जे अहाँक पूजा लोक आक-धधूर लऽ करैत अछि-
आक धथुर फुल
हरि पाओल फूल चम्पा
विष्णुक पूजा चम्पा फूल सँ करैत अछि तै हम कहैत छी जे अहाँ खटङ काटि कऽ हर बनाउ, त्रिशुल तोड़ि कऽ फार बनाउ आ बसहा ल खेती करू । गंगाक पानि सँ पटौनी करू । अहाँक सेवा हम एहने पुरुष रूप मे करैत रहब
आ करैत रहलहु अछि । महाकवि विद्यापति कहैत छथि जे पार्वती शिव सँ कहैत छथि जे एहि जनम मे जे भेल कम सँ कम अगिला जन्म नीक हो सैह कामना हम करैत छी ।