Question:- "सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणामस्वरूप ही लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होता है।" भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इसे स्पष्ट करें।
उत्तर-सामाजिक विभाजन की राजनीति का परिणाम सरकार के रूप पर निर्भर करता है। अगर भारत में पिछड़ों एवं दलितों के न्याय की मांग को सरकार शुरू से ही खारिज करती रहती तो आज भारत विखराव के कगार पर होता लेकिन सरकार उनके सामाजिक न्याय को उचित मानते हुए सत्ता में साझेदारी दी और उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने का ईमानदारी से प्रयास किया। फलतः छोटे-छोटे संघर्ष के बावजूद भारतीय समाज में समरसता और सामंजस्य स्थापित है।
लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है। राजनीति में विभिन्न तरह से सामाजिक विभाजन की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों के बीच संतुलन पैदा करने का काम करती है। परिणामतः कोई भी सामाजिक विभाजन एक हद से ज्यादा उग्र नहीं हो पाता और यह प्रवृति लोकतंत्र को मजबूत करने में सहायक भी होती है। लोग शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से अपनी मांग को उठाते हैं और चुनावों के माध्यम से उनके लिए दबाव बनाते हैं और उनका समाधान पाने का प्रयास करते हैं।
Question:- चिपको आंदोलन के मुख्य कारण क्या थे ?
उत्तर-चिपको आंदोलन का आरंभ उत्तराखण्ड के दो-तीन गाँव से - हुआ। गाँव वालों ने वन विभाग से निवेदन किया कि खेतीबाड़ी के औजार बनाने के लिए उन्हें अंगूर के पेड़ को काटने की अनुमति दी जाए। वन विभाग - ने गाँव वालों को पेड़ काटने की अनुमति न देकर खेल सामग्री के निर्माताओं को जमीन का वह टुकड़ा व्यवसाय प्रयोग के लिए आवंटित कर दिया। वन विभाग की इस कार्रवाई से गाँव वाले काफी दुखी हुए और उन्होंने सरकार के इस निर्णय का जबर्दस्त विरोध किया। परिणामस्वरूप क्षेत्र की पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण से जुड़े अन्य सवाल उठने लगे। गाँव वालों ने सरकार से यह माँग की कि जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए। उनकी स्पष्ट माँग थी कि स्थानीय निवासियों का जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर एक मात्र नियंत्रण होना चाहिए। इस आंदोलन ने स्थानीय भूमिहीन वन कर्मचारियों का आर्थिक मुद्दा उठाकर उनके लिए न्यूनतम मजदूरी की गारंटी की माँग की।